सडा फल
मेरे पापा ने भी एक आम का वृक्ष लगाया था ।
अपने अनुभव के जल से पल-पल उसे सजाया था।
फिर अब फल आने की बारी थी मन उनका हरषाया था। पहला ही फल सडा़ निकला मन उनका आघात हुआ।
पर उनके अतंरमन ने उसे कभी ना ठुकराया था ।
सारी दुनिया ने उस फल को ताना मारा था ।
और लूटा दो सब कुछ पापा को बहुत सुनाया था ।
और सब ने उसे फल को बहुत लतियाया था।
फिर भी मेरे पापा ने उस फल को पुनः उठाया था ।
फिर चुपके से पुनः सीचकर धूप में उसे सुखाया था ।
और फिर से उसे तैयार किया फिर मिट्टी में दफनाया था।
और देखो आज मेरे पापा ने पुनः उसी सडे फल से
एक और आम का वृक्ष पाया था ।