सड़क पर बचपन
दिखता है रोज़
रात को वो बचपन
पता नहीं किस
दुख में रोता है
होगी शायद कोई
मजबूरी उसकी
तभी तो सड़क
पर ही सोता है ।।
दिन में मांगता है
भीख सड़कों पर
हर शक्स के सामने
गिड़गिड़ाता है
दो रोटी मिल जाए
कहीं से उसको
इसी आस में रहता है ।।
कुछ ऐसे भी बच्चे है
जो किताबें बेचते है
जाकर भीड़ में
लेकिन खुद पढ़ना नहीं
उनके नसीब में
मां बाप का साया भी
शायद रब ने लिखा
नहीं उनकी तकदीर में ।।
दिल में है जो दर्द उनके
सबसे वो छुपाते है
माफ़ कर दुनिया को
वो सब भूल जाते है
ज़िन्दगी में अपनी
संघर्ष करते जाते है ।।
हम में से कोई तो है
जिसकी बेरहमी का
वो शिकार हुए है
पूछना चाहता हूं
उन सबसे जो वो
आ जाए सामने ।।
क्या कसूर है
उन मासूमों का जो
ये हालत की गई उनकी
थोड़ा तो रहम करते
मासूमियत पर उनकी ।।
कीमत आंसुओ के उनकी
कोई क्या चुकाएगा
आओ प्रण करें हम
अब तो कोशिश करें
जिससे बच्चों संग ऐसा
अब ना होने पाएगा
जिससे किसी और
मासूम को कोई
इस तरह ना रुला पाएगा।।