जद्दो जहद की तिसरी कडी, सडक और नाली !
जैसे तैसे घर बना दिया,अब सडक बनवानी है,
जिस बस्ती में मैं बसा हुँ,वहाँ अभी तक पगडण्डी से काम चलाते हैं,पगडण्डी को सडक बनायें कैसे,
इसकी बस्ती में चर्चा करवायी,
सडक सभी को चाहिए,इस पर सबने सहमति जतलाई,
बैठक कर एक प्रस्ताव बनवाया,
और उस को श्रीमान विधायक जी को सौंप वाया,
वह प्रस्ताव देख कर बोले,इसको देखतें हैं,
जिला नियोजन समिति में रखतें हैं,
योजना पास हो जाएगी तो स्टीमेट बनवायेगें,
कितना खर्चा आयेगा,उसका बजट बनाएंगें,
इसमें कुछ समय लगेगा,तुम लोग मिलते रहना,
और इसका पत्ता लगाते रहना, कहीं हम भूल न जाएं,
यह यहाँ आकर हमें याद दिलाते रहना,
हम फरियाद लगा आये थे,
कुछ समयाअन्तराल में पत्ता भी लगा आए,
अभी बजट नहीं मिला यही बात उन्होने बतलाई,
हमने पुन! गुहार लगाई,अपनी समस्या थी समझाई,
वह बोले बजट का ही चक्कर है,आते ही बनवायेंगे,
तुम मिलते जुलते रहना, वर्ना हम भूल जाएेंगे,
अब तो हमने ठान लिया,हर माह याद दिलायेंगे,
बार-बार हमें आते देख,नेता जी समझ गये,
सडक तो बन वानी ही पडेगी,नहीं तो ये रुठ जायेंगें,
अब चुनाव भी आने को हैं,वोट नहीं मिल पायेंगे,
हमारा बार-बार का आना जाना,काम आया,
विधायक जी का बजट मिल गया,
उन्होने सडक का काम लगवाया,
बस्ती में सडक बनी, तो साथ में नाली भी बनी,
हम खुश हुए,सडक का नजराना जो मिला,
परन्तु कुछ ही दिनों में यह उत्साह भी ठण्डा पडा,
सडक उखडने लगी जगह -जगह और खड्डे पड गये,
नाली में भी कचरा भर गया,पानी सडक पर बहने लगा,
अब तो सडक नाली बन गई थी,पानी ही पानी बहता ,
नाली कचरे से पटी पडी थी,चलना भी मुश्किल हुआ,
सडक क्या हुई,मक्कड जाल हो गई,
हर रोज कीचड भरे पानी से दो चार होते रहते,
और कुढ-कुढ के पतले हो जाते,
जहाँ गुणवता का खयाल नहो,वहाँ योजना का लाभ कहाँ,सिर्फ लक्छपुर्ती की रिवायत हो,जिम्मेदारी का अहसास कहाँ,इन हालातों के हम आदि हो गये,
ब्यवस्था के प्रति वह विश्वास कहाँ,
बस यही है ब्यथा और ब्यवस्था की जद्दोजहद की जंग,