सज संवर सजनी करे मनुहार है
गजल
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सज संवर सजनी करे मनुहार है
भौंह से भौंहों करे इजहार है
सतरंगी परिधान कटि पर डाल कर
चाल नदिया सी चले ज्यों धार है
कर प्रणय का नम निवेदन मूक हो
नैन में ही वो करे इकरार है
देख आभा उस तरूणी की तभी
सोच लगते है कि जीवन हार है
सीख लो तरूणी पगों होना खड़ा
आज लड़कों का लगा बाजार है
हर अदा उसकी लुभाती जब रही
वक्त हर उसकी रही पुचकार है
बाप माँ सब छोड़ कर बस साथ में
काट लूँ जीवन यही अब सार है
पास आता देख बोली अब पिया
प्यार तेरा तो मुझे स्वीकार है
डॉ मधु त्रिवेदी