सज्जनता सिर्फ किताबों में मिलती है …
कोई मनुष्य तभी तक है सज्जन ।
जब तक होता रहे आदेशों का पालन ।
कठपुतली बन इशारों पर नाचते रहो,
ना करो कोई आक्षेप, न विरोध प्रदर्शन।
चूंकि किया यदि विरोध और आक्षेप ,
तो यही सज्जन पुरुष दानव बन जायेगा,
कसम से ! तुम्हारा जीवन दुभर हो जायेगा,
इसकी मीठी वाणी जहर उगलेगी ,
और शीतल आंखें आग बरसाएगी ।
चढ़ जाएगा तुम्हारे सिर पर आफत बनकर,
तब जुबान से मुक्ति की दुआ निकलेगी ।
नादान है वोह भोले और निष्कपट इंसान ,
जो सज्जनता पर भरोसा करते हैं।
इस कलयुग में भी सभी को जाने क्यों ,
वह अपने जैसा ही समझते है ।
मगर जब चोट लगती है किसी से,
तब आंखें खुलती है ।
द्रवित और पीड़ित आत्मा फिर ईश्वर से ,
सवाल करती है ।
क्या वास्तव में सज्जनता
सिर्फ किताबों में मिलती है ?