सजी धरा है सजा गगन है
सजी धरा है सजा गगन है
सज गया सृष्टि का कण कण है
रँग बिरंगे पुष्पों की स्मित से
मुस्काने लगा जन गण मन है ।
नवल धवल बने तरु पात हैं
अमराई से भरे बाग हैं
स्वागत में नव संवत्सर के
कोकिला गाती मधु राग है ।
भरा खेत में कनक धन है
कृषकों के प्रफुल्लित मन हैं
ग्रीष्म ऋतु को देकर दस्तक
पदार्पित हुआ शुभ नव वर्ष है ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी सम्भल