सजा
खुद के लिए खुद सजा मुकर्रर की
शादी तो की मैंने,नौकरी भी की|
निकली थी आसमां की तलाश में,
जमीं भी पर पैरों तले न रही|
इक अनुभवी ने कहा था कभी
दो नावों पे सवारी न होती सही|
पर मैं तो महिला हूँ आधुनिक
महामहिला बनने सो,मैं थी चली|
पर जिन्दगी’एकता’का सीरियल नहीं,
जो कर ले पार’प्रेरणा’हर’कसौटी’|
घर भी संभला हुआ,दफ्तर भी सही,
पर ‘मैं’ हूँ कहाँ? ढूँढ़ती फिर रही|