सजा दे ना आंगन फूल से रे माली
सजा दे ना आंगन, फूल से रे माली।
मचेगी धुम घर – घर में, माँ है आने वाली।।
खिला सब रंग बिरंगी और लाना नवरंगी
ले आना लाल चुनरिया, माँ की साड़ी सतरंगी
चहुंमुखी दीप जलाना, आरती थार सजाना
झुकाकर शीश चरण में, माँ का आशीश पाना
अब ना कर देर एक पल भी, करले सब तैयारी।
सजा दे ना आंगन, फूल से रे माली।।
आ रही शेरावाली, उनकी महिमा है भारी
माँ की ममता को जाने “बसंत” ये दुनियाँ सारी
मिला है पहला मौक़ा, आज सेवा में माँ का
करोगे तन मन धन से तो, बनेगा बिग्रे सबका
मिलेगी आज जीवन में, अजब सी खुशहाली।
सजा दे ना आंगन, फूल से रे माली।।
✍️ बसंत भगवान राय
(धुन: थोड़ा सा प्यार हुआ है)