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2 May 2022 · 1 min read

जे जनमल बा मरि जाई

शीर्षक – जे जनमल बा मरि जाई
मुक्तक
ए धरती पर हर प्राणी के जनम भईल बा भाई
सबकेहू निज कर्म भागि के वाटे खात कमाई
केहूसे केहूके बाटे मेल न सोरे आना
सोरे आना मेल इहे जे जनमल बा मरि जाई

कविता
आगी, पानी ,हवा, अउर धरती, आकाश मिलाके
भांति – भांति के मूरति, मूरतिकार रचे सरियाके
सब कुछ जानल जाता बाकी ई अनजान बुझाला
ओ मूरति के भीतर जाने कईसन प्रान डलाला
परत प्रान ओ मूरति में ऊ मूरति लागे डोले
चले पाँव से , सुने कान से , मुह से लागे बोले
प्रान सहित जब ऊ मूरति उतरे धरती पर भाई
घर में बा संतान भइल बाजेला खूब बधाई
पाँच तत्व के ओ मूरति में जबले प्रान रहेला
तबले करत रहे ऊ मूरति तरह- तरह के खेला
लेकिनम जहिया प्रान पखेरू मूरति से उड़ि जाला
सगरी खेल भुलाला मूरति धरती पर भहराला
एही जगे सभे मानेला सही राम के माया
आज फलाने उड़ि गइलें , भू पर बा उनकर काया
रहलें देह फलाने आकी ऊ भीतर के देही
एकर मरम समझलें , भईलें राजा जनक विदेही
अवधू अइसन कठिन मरम समझे वाला बा ज्ञानी
आइसन ज्ञानी सपनों में ना रही पावे अभिमानी

रचनाकार – अवध किशोर ‘अवधू’
ग्राम – वरवाँ (रकबा राजा )
पोस्ट – लक्ष्मीपुर बाबू
जनपद – कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
पिन नंबर – 274407
मोबाइल नंबर – 9918854285
दि.01-05-2022

Language: Bhojpuri
1 Like · 114 Views
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