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22 Feb 2024 · 1 min read

सजाए हुए हूँ

माथे पर छलावा उठाए हुए हूँ l
उजाले को फिर भी जिलाए हुए हूँ l

पल लौट कर वही आ रहा है
जिसे मुश्किल से बिताए हुए हूँ l

एक नक्षत्र को पानी में डुबा कर
भंवर पैरों में सजाए हुए हूँ l

पहना कागज़ ने शब्दों का जामा
मौन इसीलिए बचाए हुए हूँ l

टूटन का शिल्प सीख रही हूँ
किला तभी इक बनाए हुए हूँ l

Language: Hindi
1 Like · 99 Views
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