सजाए हुए हूँ
माथे पर छलावा उठाए हुए हूँ l
उजाले को फिर भी जिलाए हुए हूँ l
पल लौट कर वही आ रहा है
जिसे मुश्किल से बिताए हुए हूँ l
एक नक्षत्र को पानी में डुबा कर
भंवर पैरों में सजाए हुए हूँ l
पहना कागज़ ने शब्दों का जामा
मौन इसीलिए बचाए हुए हूँ l
टूटन का शिल्प सीख रही हूँ
किला तभी इक बनाए हुए हूँ l