सजन बिजली गिराते हैं
सजन बिजली गिराते हैं (ग़ज़ल)
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कहानी मोहब्बत की सुनाते हैं,
बुझे मन को रहते वो जलाते हैं।
शहर में मयख़ाने तो बहुत हैं,
सुरा हम नैनों से ही पिलाते हैं।
कहाँ गुम है रूहों की प्यार छाया,
क्षुधा वो क्यों जिस्मों की मिटाते हैं।
जहां में मतलब से हैं जुडे बाकी,
सनम पल में सब वादे भुलाते हैं।
सदा मजबूरी में ही मिले अपने,
यहाँ रिस्ते ना दिल से निभाते हैं।
नशे में झूमती आँखें रिझाती हैं,
सजन उर में बिजली सी गिराते हैं।
नशेमन टूटे जो हैं कब खड़े होते,
सदा मनसीरत हिय को सतातें हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)