सजदों में लज़्ज़त ना थी…मेरी दोस्ती से पहले
तुझे कोई जानता ना था…मेरी दोस्ती से पहले
तेरी जिंदगी रोशन कहाँ थी…मेरी बंदगी से पहले
तेरी सादगी कहाँ थी..मेरी हाज़री से पहले
तू खुदा कहाँ था ऐसा…मेरी बंदगी से पहले
फ़िज़ा में रंगीनियाँ ना थी..तेरी चाँदनी से पहले
वो संमा रोशन ही ना हो..तेरी रौशनी से पहले
ऐसे ग़मे यार में अब डूबा रहा..यूँ मयकशी से पहले
जिंदगी में तीरगी-ए-शब थी…तेरी आशकी से पहले
मयकशी में खुद को डुबोया…तेरी हाज़री से पहले
बंदा यूँ खुदा को पाया..अब तेरी रहबरी से पहले
किस्मत में तीरगी-ए-शब रही…खुदा की बंदगी से पहले
जिंदगी ऐसे गुमराही में जिये.. यूँ तेरी रौशनी से पहले
नज़रे मिली उनसे..यूँ दिलकशी से पहले
दिल दिया उनको…अब आशक़ी से पहले
बेचैन निगाहे ढूंढती तुझे..तेरी बेरुखी से पहले
मिल जाये तेरी आशिक़ी…तेरी दुश्मनी से पहले
लफ्ज़ लफ्ज़ तू ही समाया…. शायरी से पहले
नाम हो गया मेरा…तेरी बेवफ़ाई से पहले
सलीका ही ना आया उन्हें…गुमराही से पहले
वफ़ा लाज़िम थी उनपर…बेरुखी से पहले
मेरे सजदों में लज़्ज़त इतनी अता कर… अपनी बंदगी से पहले
अब हर दुआ कबूल हो जाए…यूँ तिश्नगी से पहले।।
गिरह का शेर
“महबूब के इश्क ने अब तुझे खुदा बना दिया
तेरे सजदों में लज़्ज़त ही ना थी..आशक़ी से पहले”।।
®आकिब जावेद