सच जानते तो सब है
सच जानते तो सब है
पर कोई बोलता नहीं है
झुठ से नाराज़ तो है सब
खून किसी भी खोलता नहीं है
हासिल करना है सब
जो भी दिल चाहे
क्या खोया क्या पाया
कोई सोचता नहीं है
खंजर से भी तीखे होते है
जबान के घाव
बोलने से पहले शब्दों को
कोई तोलता नही है
बरसती तो रहती है
दिन रात रहमत की बूँदे
ठीक से आसमां को
कोई निचोड़ता नहीं है
घरो के बीच की दीवार
तो लाजिमी है मगर
दिलों के बीच की
दीवार को कोइ तोड़ता नहीं है
दीपाली कालरा