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21 Jan 2022 · 38 min read

सच चुभै है (हरियाणवी काव्य संग्रह)

काव्य संग्रह – सच चुभै सै
खान मनजीत भावड़िया मजीद

भीतर की बात
रचनाकार का मन सबका मन होवे सै खुद तै हट कै पूरी दुनिया में घट रही घटनाओं को आपणी कविता के माध्यम से अंकुरित करै सै। रचनाकार अपनी कविता एक खातिर नहीं बल्कि पूरे समाज खातर लिखै सै, सबकै लिये लिखै सैं। मैं ग्रामीण जीवन परिवेश से जुडा हुआ हूं। उस परिवेश की सुगंध मैं अपनी कविताओं के माध्यम तै कविताओं की सुगंध ग्रामीण परिवेश तक पहुंचाण की कोशिश करू सूं। मेरी कविता का आकर्षण, अर परिवेश की निकटता ही असली मानव को निर्मित बनाने का काम करै सै यू हे आधार सैं
मेरा नये काव्य समूह में मैंने अपने ग्रामीण क्षेत्रों की भूमिका को कविता के माध्यम से एक नया रूप दिया सै। कविताओं के माध्यम से मुझे कटु सत्य लिखने का भरसक प्रयास किया सै। अर पाठक को सोचने और अनुभव करने को विवश करा सै। आज के टैम में नैतिकता को कुचल डाला सै और दयालु को भी मिटा डाला सै। स्वतंत्र भारत में भी आदमियों के अधिकारी, सुख आदि चुन्नी के पलले की तरह ढक राख्या सै। याडे़ समाज के कुछ लम्बरदारों ने कब्जा कर राख्या सै आज भी वहीं स्थिति होग्यी सै जो आजादी के टेम पै थी।
आज कुर्सी ही खैन्चे मंें धंसी पड़ी सै उसनै साफ करणीयां कोन्या, कोई ना अच्छी तरह से सम्भाल पारे से क्योंकि कुर्सी ते बहुत सारे दाग लाग्य रहे सै जिस प्रकार बरसात के टेम अच्छी खासी दिवार भी छत की मिट्टी से बदरंग हो जावै सै यूं हे कारण सै आज नैतिकता, विश्वास, सच, आत्मीयता सब की सब खुग्यी सै।
अर जीवन को पिछाण नहीं रही सैं। हर आदमी का दिमाग जकड़ा हुआ सै किसी नै किसी रूप में उसने जकड़न सै उभर कर बाहर नहीं आ रहा है। अलग-अलग चेहरा में बहुत घणाएं फर्क आवै सैं। जिनके कारण नकली दिखावा ढेर हो रहा सैं
मन्नै मेरे इस काव्य संग्रह में राष्ट्रीयता, प्राकृतिक व जमीन में दबे हुए मुद्दों को उठाने की कोशिश की सैं मन्नै नये पाठाकें के दिलों दिमाग पर जकड़न हटाने की कोशिश की सैं जो आज चारों ओर फैला हुआ सै।
मुझे इतना तो मालूम नहीं सै कि किसी कविता में अलंकार, छंद, रस दिया गया सै लेकिन मुझे इनको कविता में पिरोने का पूरा प्रयास किया है।
लेकिन आज का समय छंद मुक्त कविताएं लिखने का दौर सै या मैं कह सकूं सूं कि छंद मुक्त वादी युग कोनी क्योंकि आज के टेम में भी छंद मुक्त कविता में अपनी जुबान का रस घोल देते दै कि लय की गति ओर बढ़ जावै सैं मेरा नया काव्य संग्रह मैं छंद बांधन खातर कतराता हूं क्योंकि इस मामले मैं अभी नर्सरी कक्षा का बच्चा सूं। अगर कविता के भीतर लय नहीं सै तो वह कविता नहीं रहती।
मन्ने किसी से एक को दोषी देना गलत सै कोई आज का दौर हवा मैं बाते कर रहा सै अर जिस तरफ की हवा होवै सै उसी ये बात करै सै सब कुछ हवा के अन्दर बह गया सै कुण जानै सै के भविष्य की नोका कित डटगी या डूबगी। इस बात का तो बेरा कोन्या।
मन्नै इस कविता संग्रह के अन्दर यथार्थ झलकाने की पूरी कोशिश करी सै। मेरी आशा सै कि आपको मेरा यूं नया दूसरा काव्य संग्रह जरूर पसंद आवेगा। पिछले में मन्नै अनेक सामाजिक कुरीतियों को दूर किया सै। इस काव्य संग्रह में भी ठीक मन्नै समसामयिकी विषयों पर ज्यादा जोर डाल्या सै।
खान मनजीत भावडि़या मजीद
गांव-भावड़, तहसील गोहाना, जिला सोनीपत
हरियाणा- 131302
09671504409

बेरोजगार

जित भी जाऊं उड़ेए सारे बेरोजगार हाण्डे सै,
के करलां उस पढ़ाई का नौकरी आला न भी छाण्टै सैं
पढै लिखे व्यक्ति का होर्या सै खूब शोषण
चाहे समाज हो स्कूल हो क्यूकर करैं भरण-पोषण
अनपढ़ आदमी दिहाडी कै जब ल्यावै सै खूब रोकडा
इसपै तो दिहाड़ी बणती कौनी भटकता हाण्डे खडा खडा
पढे लिखे इस जमाने मैं पढ़ाई का महत्व तो सै खूब
लेकिन शोषण करण आलै नै बणा राख्ये अनेक रूप
ना वो गर्मी देखे ना देखे सै सर्दी
उम्मीद तो राख्ये खूब भला क्यूकर हो भर्ती
आजकल के टेम राजनीति की भी हवा हुई खल्लास
डिग्री तो खूब बाटे नौकरी ना मिले, मिल जावै से लाश
सरकार अर समाज नै मिलकै कदम उठाना होगा
बेरोजगारी का यूं समाज तै बोझ सर तै तारणा होगा
मनजीत खान भी करे होण्डे सै एम ए बी एड
इसके भी नौकरी पाण खातर लिकड़ी सै दीढ़
’’’’’’

बुढ़ापा
यू बुढापा बैरी सबमैं आवै सै।
किसै कै गम अर किसे के खुशी ल्यावै सै
पर कुछ आधुनिक टेम बच्चे होज्या सै निरभाग
पढ़ा दे सै लिखां दे सै अर फूट ज्या सै भाग
बुढापा तो सबमैं आवै यू दुनिया कहवै सै
बिना बेटा बेटी बुढा-बूढी एकली रहवै से।
पढे लिखे बालक का इस टेम खूब होरा सै धोखा
बुढा बूढी न्यू सोचे म्हारे छोरे का भी नौकरी में आवै मौका
धन ना पास ना जमीन बता क्यूकर पावै रोजगार
जै नौकरी मिलज्या छोरे नै म्हारा खूब होज्या सुधार
फेर म्हारा भी गांव अच्छा होगा खूब व्यवहार
फेर गाम म्हारे सेती खूब करता रहगा प्यार।
पर न्यू सोचूं यू बुढापा म्हारा लिकडज्या क्यूकरे
पोता-पोती, धोता-धोती मै म्हारा घर रहे सै भरैं
औलाद की तो पूर्ती होगी बुढापे की होगी कब
नौकरी मिलज्या छोरे नै मेरे दिन कटे जब
खान मजीद भी होवेगा कदे तो बूढा
जै नौकरी नहीं मिली तो मेरा होेज्यगा कूण में मुढ़ा।
’’’’’’

किसान
किसान की खस्ता हालत आज होरी सै
वीज अर दवाई महंगी होरी सै
मुश्कल होरे ब्याहणे छोरा-छोरी सैं
कुए की माटी कुऐ के लाग्ये या बात होरी सैं
गर्मी में जले, ठण्ड में ठरे यू कसूता हाल
किसान के मारे इन राजनेताओं की होरी बुरी चाल।
बता टेम पै किसान न भाव ना मिलै
अर बालकां की फीस ना पिस्से मिलैं
इस महंगाई कै दौर मै क्यूकर जीवां
ईब छाती में मुक्का मार कै यू जहर पीवा।
किसान आत्म हत्या करै से खूब
अर सरकार समझै सै इनै बेकूफ
किसान तो अन्न देवै सै सबनै
ना गरीब देखे ना अमीर रहवै अपने पन मैं
भावडिया आज तेरा भी बुरा हाल हो लिया
आधुनिक समाज में तु भी आधुनिक चाल हो लिया
’’’’’’

पढाई
पढाई भी जरूरी सै सुन लो सारे भाई
या भविष्य समारण की अच्छी नीति आई।
अनपढ़ मानस की कोई ना करै सै कदर
यू भी अनपढ रहगा रहगा इसके फादर मदर
पूरा समाज बुराई करै सै जै रहजा सै अनपढ
आधुनिक समय सै पढे लिखे का गढ।
सुन लो भाई बहन करो सारे जतन।
कोई अनपढ ना रहवै इसा करो यतन।
बुढे आज भी बस चढण तै पूछे बोर्ड उसका
कित तै आई कित जा गी बता खोल जरा इसका
पढाई सै बडे काम की चीज याहै से अपणी मीत
खुद पढ़ां और पढ़ावां तभी होगी समाज की जीत
खान भावडिया भी खूब पढ़ रहा सै
नौकरी के काबिल कागचां पै अड़ रहा सै

’’’’’’
टी0वी0
टी0वी0 नरा नरी मनोरंजन का साधन कोन्यी
अनेक जानकारी देवे अर सिखावै सेै भरपूर
जीव-जन्तु अर समाज की बात बतावै
पूरी दुनिया की यू घर बैठया सैर करावै
नौकरी की अर सरकार की बात घर पहुंचावै
आच्छी-आच्छी नाटक अर फिल्म तक दिखावैं
लोक संस्कृति अर देश संस्कृति का करै प्रचार
पूरे भारत में टीवी का होरा पूरा प्रचार।
टीवी का महत्व आज समाज खूब नै बताया।
अच्छी बातें सिखौ यू खान मनजीत नै सुझाया

’’’’’’

किताब
सबतै बढिया आपणा दोस्त किताब नै कहवै
पत्नी साथ छोड दे या पास हर दम रहवै
भाषा, लिपि का पूर्ण ज्ञान करवावै सै
समाज की या कागच कै माध्यम तै बात करवावै
खूब पढो किताब अर कर अपना स्वाध्याय
इसने पूरे समाज का ज्ञान जरूर पावैं
किताब साहित्य का ज्ञान भी करावै
किताब नै अपनी छाति कै लावैं
जब भी पढां किताब मन हल्का होज्या
पर ज्ञान अर विज्ञान का खूब ज्ञान टोज्या
भावडिया भी स्वाध्याय खूब करैं
घणे पेजां न देख का ना कदे डरैं

’’’’’’

’’’’’’

बलिदान दिवस
तीन युवा जब फांसी चढे आसमान तक रो पड़ा
वो तो हांस रहे थे पर हिन्दुस्तान रो पड़ा
जीये भी भतेरे अर मरे तो खूब मरे
इस विदाई पै तो श्मशान तक रो पड़ा।
गर्दना मैं रस्सी थी अर थां मां का अभिशेष
आबरू लुट री भारत की सारा जहान रो पड़ा
हिन्दूस्तान के इंसानां नै तो रोणा था अर खूब रोया
भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव भी फेर खूब टाया
तीनों के फांसी झूले पाच्छे, पता नही मां कैसे सोई होगी
इनकै गले ने देख कै, रस्सी भी रोई होगी
तीनों हंसते-हंसते फांसी चढकै नाम होया अमर
23 मार्च का दिन बलिदान का पूरा मनावै भारत भर
युवा थे तीनों भी पाणी आजादी
अंग्रेज भी फंासी चढाकै होग्ये थे राजी
खान मनजीत भी मनावै सै दिन बलदानी
इसे युवा ओर नहीं ठयावै चाहे देखो दिन-राती।
’’’’’’

पृथ्वी
प्रकृति की शोभा बताई सै न्यारी
या लाग्यै सै दुनिया मैं सबतै प्यारी
अनेक प्रकार सै अजीब जन्तु,
आखंे में भ्रम डाले सै अनेक तन्तु
अनोखे-अनोखे देखण नै मिले सै चित्र
हरियाणा कै सै रूप घणे सै लाग्ये सै विचित्र
मन मोह सै सुबह-सुबह का नजारा,
खूब लाग्यै सै प्यारा लाग्यै सै प्यारा।
आज के इस नजारे ने मेरी आंखे देखन ने तरसै
प्रकृति तै होवै से छेड़छाड़ जब आख्या तै नीर बरसै
प्रकृति का नजारा हम सबनै पाणा सै
एक आदमी नै एक पेड लगाणा सै
बेटी का ब्याह हो या बेटे का ब्याह हो।
एक पेड इस अवसर पर लगाओ फेर अलग नजारा हो
तभी बढेगी हरियाली अर सुन्दर होंगे हरे वन
तभी आक्सीजन मिले अर जी पावेगा जन-जन
मजीद खान नै यू प्रण लिया सै
एक पेड़ घर में जरूर मिला सै
’’’’’’
धरती
अलग-अलग जगह पर मौसम भी अलग बतावै सै
किते गर्मी अर किते जाडया या बात बतावै नै
कितै सै हरे तरू किते सै बर्फ के सरोवर
अलग-अलग सै नजारा देखो पलख उठा नजर
बंजर भूमि भी हरी होगी सै
जाम ज्या सै हरी घास उडे होगी सै
सूरज भी गर्मी खूब देवे सै
फेर मजदूर के शरीर का पसीना लेवे सै
किते सूरज पूरे दिन दिखता कोन्या
उडे ये सोच्ये ठंडया मौसम भागता कोन्या
हरे भरे पेड अनेक रंग कै सै फूल
इसा लाग्ये जणू धरती पार रही आभूषण
हरित बस्त्र धारण किये जैसे हो अनेक बाग
आक्सीजन भी खूब मिले तभी रहे मनुष्य जाग
खान मजीद धरती की करां खूब सेवा
घर-घर पेड़ लगावां आक्सीजन की पावै मेवा।
’’’’’’

मिट्टी का टीला
मेरे गांव की टीला आज बेकार होग्या
उस के अन्दर पोलिथीन पाउच का ठेला पार होग्या।
आज उसे टीले पर गाई थी शहीदां की गाथा
इन शहीद कै बिना भारत आजादी ना पातां
उस मिट्टी में मेरा खून अर मेहनत लगी सै
फिर टीला उठवाया अर धरती जहर पड़ी सै
घास फूस अर ना पेड़ बिलकुल सुनसान सै
पेड लगाओ टीले पै तभी हमारी शान सैं
उस टीले का दबदबा रहा नही सै आज
कोई आदमी उस बिना ना करता था काज।
क्योंकि रास्ते में आता था वो टीला
जो आज रहा नहीं कर दिया गाम ढीला
भावडिया खान भी उस टीले ने देख के रोवै
गर पेड़ पौधे होवै तो हरियाली पूरे गाम मैं होवैं

’’’’’’

विद्यालय
योहे म्हारा व्दियालय सै
उत्तम शिक्षा का आलय सै
पढां सां हम सब बच्चे
नियम रीति में सब सच्चे
इंग्लिश यहां सिखाई जावै सै
हिन्दी भी पढाई जावै सै
गणित यहां समझाई जावै सै
कला यहां सिखलाई जावै सै
शिक्षक सभी सै गुणी विद्वान
देवै से शिक्षा का नित दान।
भाईचारे की शिक्षा देवे सै।
अर देशभक्ति का पाठ पढावै सै
सारे सै यहां अनुभवी मास्टर
मानवता के सै वो ब्लास्टर
करे सै वे सबकी देखभाल।
उन्हे सै अनुशासन का ख्याल
खेल संगीत में सै सबतै अच्छे
सै म्हारे विद्यालय के बच्चे
म्हारा मुख्याध्यापक सै सबतै अच्छा
कर्तव्य परायण और सै सीधा सच्चा
खान मनजीत भी रहा सै इसका स्टूडेंट
हर रोज विद्यालय जावै ना रहा कदे अपसेंट।

पूर्व विद्यालय- राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, भावड़

’’’’’’

मजदूर
मजदूर बेचारा थका हारा करण की सोची आराम
उसका जी मचलावै था समय पर ना मिला दामं
पूरे दिन मेहनत कर ना सुख तै सोण पाया
पता नहीं किसे हालात होगे इसा कोण आया।
हाथ फैलाये खड़ा रहा जुबान चलाउं तर-तर
ना पैसे मिले ना अनाज मिले चला जा आपने घर
कै इस समाज मैं मजदूर की याहे इज्जत सै
पेट का सवाल पापी पैसे देने पै लज्जत सै
मजदूर की जिन्दगी किसे का पास ना आवै
मनजीत खान यू देश में प्रचार प्रसार फैलावैं

’’’’’’

साइकिल
साइकिल के दो पहिये है जिसमें सै अनेक ताड़ी
किते हैंडल किते पेडल कितै बाजै से टाली
सीट कवर भी पाट ग्या हैण्डल ढीला होग्या
मजदूर आदमी का ना ब्योत जी खुला सा होग्या
ईब कै करू साइकिल बेचू अक राखू
इसपै काम ज्याउं सू क्यूकर इसकी याद राखू
टोटा होरा सै घणा इब तै बेचना पडेगा
कुछ रूपये आ जा तै दुश्मन मुंह मुंदना पडेगा
फेर के करू आखिर में यू देयणा पडग्या
ईब काम पै क्यूकर जाउं जीते जी मरग्या
काम भी दूर मिला याद आई साइकिल।
खान भावडिया नै मेल मिला ओर ल्या साइकिल

’’’’’’

अंधेरा
सारे समाज में अंधेरा सै
यू मेरा सै यू मेरा सै, जाति धर्म के बीच बंधा, तेरा आधा तेरा आधा
इब समाज का क्यूकर हो उद्धार
दोनों भाइयों में आपस होगी तकरार
ना गाम का ना पास का
ना परिवार का ना आस का
पत्नी भी छोड़ डगरगी रै
पूरी जमीन ले न्यू कहंदी रहगी रै
क्यू डरगा तैरे भाई हैं
परिवार बिछड़ गया
ना पत्नी का खोट
ना परिवार की चोट
बस एक सन्नाटा छाग्या
प्रकाश में जाति का
अंधेरा छाग्या
प्रकाश में जाति का अंधेरा
छाग्या
’’’’’’

भू्रण हत्या

समाज आज भी ना लड़की की इज्जत करता
ना समाज तै ना सरकार तै डरता
डाक्टर भी फट देसी हां भरता
बता तेरी बहू कड़े सै न्यू कह फिरता
अल्ट्रासाउन्ड मशीन भी आई
के बेरा था इसने छोरिया की श्यात चढाई
सरकार भी इब खूब कदम ठावै सै
ना बेटी को मरवावै खूब इश्तिहार बनवावै सैं
खुद भी जोर देवै तो समस्या का सै हक
ना छोरी होण तै रूके ना कदे बहू जठ
क्यूं ते भी तो छोरी थी, थी परी आसमान
बेटी मरवादे बहू चाहवे ये ना सै अरमान
बेटी न थाम जन्म दो या सै जगत महान
मनजीत खान भी उपरली बातां का राख्या ध्यान।
क्यू पैदा होण तै पहल्या लेवै सोजान
तभी तो सै यू मेरा देश महान।

’’’’’’
मजदूर का हाल

चला गया प्रदेश पैसा कमाने
थैले में कुछ चना और दाल पाने
टुटी सै मेरी चप्पल फट्या सै पजामा
टेम पै मजदूरी मिलज्या जब जी मै जी आज्या
मेरे बहुत सै अरमान सै
अलग देश जहान तै।
बडे की कोठी फैक्ट्री मैं काम करने जाणा सै
ना तवा, ना आटा फिर भी भूख मिटाना सै
धरे फावडे पै दो ईंट रोटी सैक कै खाना सै
गीली लाकड़ी सुखे आसू फेर पसीना बहाना सैं
धुआ देख के कुत्ता भी दौड़ा दौड़ा आया सै
सोच मिलेगा टुकड़ा डेरा उसमें जमाया सै
मेहनत कश मजदूरों का बुरा हाल हो रह्या
ना टेम पै रोटी ना आलु ना मिल दाल रह्या
होली अर दिवाली आके उनका खून सुखावै से।
घर परिवार की देख हालत दीदी दौड़ी आवै सै
मनजीत खान भी फंस सै झमेले में
क्यूकर करा कमाई ईब बता अकेले में
’’’’’’

मजदूर सू मैं

मजदूर सू मैं
तोडू सू मैं पत्थर
अर ढोउे सूं गरीबी का बोझ
आपणे कांधा पै
जिन्दगी भर का
ना जाने कितने लोग
आसमान की उंचाई छु ग्ये
मेरे भूखे पैट पै पां धर कै
लेकिन मैं क्ये करू
मैं फुटबाल की तरह
लुढ़कता रहा
कभी इधर कभी उधर
लुभावने वादों के फर्श पर
उन चिकनाओं पर
फिसलता रहा
पिछले साल
जब खुला था शहर में
सरकारी अस्पताल
थी मेरे बेटे का मासूम लाश
लाश पै सिर धर कै
रोण लागे
फटी धोती लिपट रहे
सै उनकी मां की
गोदी मैं
इसा ल्याग्या जणू मेरे
शेष बालक भी
अनाथ सै
क्या याहे नीति सै मेरी
न्यू तडपता रहूगा
इस जहान में।
देश महान में।
देश महान मे।

’’’’’’

बाल मजदूर
बच्चे जग नै समारे सै
ये ही उजियारा ल्यावै सै
इनके नन्हे-नन्हें सै हाथ
करते रह सै काम दिन रात
जूठन मान्जे अर जूठन खावै
खेल कूदन अर मस्ती ये भुलावै
कदेंखडे होज्या सै सड़का किनारे
कदे माल बेचन लाग्ये बिचारे
कदे करे सै ये जूते साफ
यू किसा से इन गेल्या इन्साफ
बेचे सै फल पर खुद ना खावै
बोझा कन्धा पै जरूर ठावै
कदे-कदे भीख खाŸार हाथ बढावै
बस स्टैंड अर रेलवे टेशन पे पावै
खेता मैं भी करै सै काम
लाग्ये रह बेचारे दिन रात
क्यू मरा हुआ सै इनका मन
कहां खोग्या सै इनका बचपन
भोलेपन पै सै भारी काम
ना कदे बैठया ना लिया आराम
याहे तरक्की सै मेरे देश की।
बाल मजदूरी करावै नये भेष की।
ना नींद आई अर खेल भी मन्ने खो दिया
छुप-छुप कै ने यू आसंू नीर तै रो दिया
किसे नै इनको क्यू नहीं जाणा
अपने बचपने को क्यू नहीं पहचाना
स्कूल अर दोस्तां तै राख्ये दूर
क्यू सै इनका जीवन क्रूर
रोज बदले सै यें
बाल मजदूर।
या दूर हो क्यूकर
ना सरकार
ना समाज
ना बाजार
देवै सै ध्यान
फेर भी बाल मजदूर
करें काम
हे! देश मेरे महान
तुझे मेरा प्रणाम
सारे कट्ठै होलो वाहण अर भाई
बाल मजदूरी नै खत्म करण की बीडा ठाई
कही खो न जाए इनका बचपन
कदे ना रोवे यू इनका नन्हा मन
यू सै दुनिया का अनमोल रत्न
इन्नै बचाण का पूरा करा सदा जतन
ना खुवै इनकी कदे हंसी अर मुस्कान
कदे दबे नी रहे इनके अरमान
आओ सारे मिल कै करां विचार
आओ बच्चां की सुना पुकार
इन्हें भी है जीने का अधिकार
इन्हें भी दे दो पूरा प्यार
खेलन की ना करो उधार
ना हो बचपन मै तिरस्कार
तभी भावडिया होगा उद्धाार
मेरे देश का
मेरे चमन का
’’’’’’

नारी की शिक्षा
नारी नै ना समझो नादान
यही सै भविष्य की पहचान
यही सै उज्जवल भविष्य की शान
यही सै देश की शान, बान, आन।
नारी का बढ़ रहा सै सम्मान
समाज में खुद की बना रही है पहचान
इनके साथ होता रहा घोर अपराध
शिक्षा से ही बनेगा देश महान
खूब मिल रहा समाज में सम्मान
ना समझो पैर की जुती ना करो अपमान
आदमी यां तै आगे सै नारी
शिक्षा के क्षेत्र में भी बाजी मारी
अपनी भूमिका निभा रही खूब सारी
इनसे छोटी है दुनिया प्यारी
शिक्षा तै इनमें आग्यी सै जान
आज मिल रहा है नारी को सम्मान।
ना होती शिक्षा अर ना हो विश्वास
ना हो जागरूक ना हो विकास
ना जावै ये दहलीज के पास
ना मिल पातै सारे अधिकार
ना करती देश का उद्धार
ना होती शोषण का शिकार
न करे रूढिवाद इनका अपमान
बढ़ रहा समाज में इनका सम्मान
खत्म होगी पुरूषों पर इनकी निर्भरता
खत्म होगी तभी देश की निर्धनता
करेगी खत्म इन सारी कुरीतियों नै
खुलेंगे रास्ते जब छोडेंगी पिया नै
खेला मैं भी हो रहा सै नाम
अर सम्भाल राख्यी सै देश की कमान
काल तक थी समझा थेे नादान
बढ़ रहा सै समाज में इनका सम्मान।
ना चुप रहवेगी, ना दुख सहवेगी
तोड दी सारी बेडिया मन लुभावन जेवडि़या
घणीये नारी नै करा सै बहुत घणा प्रयास
बढती रहे सै आबादी अर बढता रहे विश्वास
करै से हर बाधा का डट कै सामना
करे सै शिक्षा प्रचार भावे सै कामना
काल तक तो थी ये नादान
समाज में इनका बढ रहा सम्मान
नारी अर पुरूष में आज भी भेद सै
इस पूरे भारत ने बहुत घणा खेद सै
नारी का ना करागे सम्मान
ना रहगी नर की भी पहचान
यू सै असली देश का सोना
इनसे तुम कभी भी ना खोना
भावडिया भी राख्ये सै ध्यान
समाज में बढ़ रहा सै सम्मान।

’’’’’’

पिता बना
उन्नै दुख नराये झेला
जब में नी था मेरे एक धेला
अर मांगों का था पूरा झमेला
पैसे ना हो पास फेर दिखाया मेला
मैंने खूब आंसू थे बहाये
दिल में ये दुख दर्द बताये
पिता बनकर समझ आया
घर की कमी खुद पै झेली
मुंह से हंसी तक ले ली
दुख का टूट पड़ा हो पहाड
खर्च चलान में होग्या पछाड़
पिता बनकर समझ आया
मैं खूब रोया रूठा भाग मेरा छूटा
मैं इस गरीबी नै जड तक लुटा
ढूंढ के कैसे लेकर आउ मेरे आंसू
तब तक खाणा नही खाया जब तक सूखग्ये मेरे पांसू
पिता बन समझ आया
पढाण मैं लिखाण में अच्छे कर्म कराण मै।
आगे भी बढे नहीं पिछे हटे ना आवै गाम पिछाण में
बहोत घणी चाह थी उनकी किनती पूरी काम
मारा करता जुता मेरे छाति तै ना दूरी करू
पिता बन सामझ आया
भले ही घर से निकाला हूं
भले ही चाहे मार डाला हूं
ना समझेंगे हमें कभी पराया
कितना अच्छा दिल मेरे समझ आया
पिता बन कर समझ आया
चाहते हैं आज भी मैंने कितना
पहले दुख देख फिर दिल जितना
उनका ना कर्ज में उतारन पाउ
ना रकम तै मैं पिछा छुडाउ
चरणों में मैं खुद को भेंट चढाउ
मैंने केवल उनका गान गाया
पिता बनकर समझ गाया
छोटी-मोटी मेरी कमी दूर करै सै
मेरी तकलीफां खातिर गांव-गांव फरै से
किते नौकरी की, किते काम की बात करैं
सरपंच गेल्या, पंच गेल्या भी चर्चा खूब करै सै
खान मनजीत तेरे पढण का फायदा ना लाग्या ईब
नौकरी खातिर रिश्वत खोरी अर भ्रष्टाचारी तै गोझ भरोगे अफसर जिब
जिब कितै काम का जाकै नक्शा सा बनाया
पिता बनकर मेरे समझ मे ंआया।

’’’’’’

मां की ममता
मेरी मां तब मुझे क्रोध करती
फिर भी क्राध्ेा में ममता छलकती
फिर उपर नीचे मैंने पटकती
कहे तू खूब पढ़ा कर
मैं तो ना पढण पाइ्र
क्यू अनपढ़ रही बताई
मैरे तो काम नै घणी सताई
कहै तू खूब पढ़ा कर
तेरी ममता का आंचल मां
तेरी लाज राखूंगा मां
तेरा नाम रोशन करूं मां
कहे तू खूब पढ़ा कर
मैं टेम पै छोरियां मैं
नाम गाम अर गोरियों में
बाहर ना काढ़ा करते
कहे तू खूब पढ़ाकर
आज तेरी ममता का
भाई बाहण समता की
इस कलीहारी जनता का
मैंने करा छट कर सामना
कहे तू खूब पढ़ा कर
तेरी रोटी की वा याद
बाजरे की खिचडी कर याद
घणाएं आया करता स्वाद
कहे तू खूब पढा कर
जित जाउं उडे ले ज्या
खेत पिहर गेल्या ले ज्या
फेर मन्नै अण्डे जू से ज्या
कहे तू खूब पढा कर
तेरी ममता का मैं क्यूंकर कर्ज तारू
तेरे कर्म का मैं क्यूकर फर्ज तारू
मन्नै नौकरी मिले या कयूकर मर्ज तारू
कहे तू खूब पढ़ा कर
आपणा गाम में सै एक फट
है सबतै निर्धन अर जरजर
मैं तेरे खातर फिरू सूं दर-दर
कहे तू खूब पढ़ा कर
सारे समाज में इज्जत खूब होरी सै
मेरे दो छोरे अर दो छोरी सै
इनकी ममता मन्ने दिल में वे याद लोरी सै
कहे तू खूब पढ़ा कर
पिता भी डाटया करता
खेत घर का काम खूब करा करता
फेर भी छह जीव का पेट भरा करता
तन्ने कहा तू खूब पढा कर
मेरे बालकां नै मैं अच्छी नौकरी लगाउं
अच्छा छोकरा छोरी खातर छोरा खातर अच्छी छोकरी ल्याउं
फेर में घणा सामान खाण का टोकरी भर भर ल्याउं
कहवै तू खूब पढा कर
तेरी ममता का फर्ज मेरे तै जीते ना उतरैगा
अगर नौकरी मिलगी तो मां तन्नै ना खतरेगा
फेर आपने बालकां को पेट ठीक भरदे गा
कहवै तू खूब पढ़ा कर
खान भावडिया नै मां की ममता बताई
सारे न बराबर समझे ना कदे करै सताई
सारे गाम के सुन लो चाचा ताऊ बाहण भाई
कहवै तू खूब पढ़ा कर।
’’’’’’

तीस साल

मैं घणीय जगहां
पर घुमा फिरा
पर मन्ने पूरे तीस साल लाग ग्ये
मन्नै
यू समझण मैं
के अच्छा पीण का पानी
अर रोटी भोजन
अर सै बैकार की कला
ना ही देवे सै
इसने कोई सिला
ऐसे व्यक्ति नै
तो समाज
पागल समझ सै
जो गाम अर
समाज नै कलम
के माध्यम तै
देश सुधारण
का प्रयास करै
सै
मन्नै तो सारे
पागल बेवकूफ
आदि नाम रख
दिए ओर
मां-बाप का
नाम मिटा
दिया मन्नै
यू देख्या सै
पूरे तीस साल
मैं
तीस साल मैं
और जिब हम मर जावां
सा अर थक
जावां सा आपणा दिल
अर मिटा देवैसे
अपनी आंख्यां की
आखर की पलके
म्हारे सारे किये
गए कामों पर
म्हारी सारी की
सारी चाहता
और अर
म्हारे सारे
सपनां पै अर
सारी इच्छा और
पर
अर भावना पै
नरी नफरत ही
ही पडै सै
अर सारे समाज
में या नफरत
सडै सै
म्हारे भीतर
समाज के भीतर
मन्नै यू देख्या सै
पूरे तीस साल मैं
पूरे तीस साल मैं

’’’’’’
रोटी नहीं मिलती
ना मिले कदे रोटी
घणे लम्बे समय तक
ना मिले टेम पै
पैसा
अर छिन जावै सै
सारी की सारी मुस्कान
रोटी ना मिलती
फेर भी वह आदमी
रोटी के इंतजार खातर
किसी आदमी अर
किसी व्यवसाय को
वहीं छोड़ता
अर सारी हाण
रोटी के बारे मै
सोचे जैसा
दिन में अर रातें में
सोने के बाद भी
रोटी सपनां मैं
तंग करै सै
इस रोटी की खातर
आदमी अपने घर
क्यां कै साथ ना
कर सकता प्यार
अर बिलकुल रह
सै उजड़
कदे कदे तो
वो पूरी जिंदगी
अपनी दांव पै
लादे से रोटी की
खातर
पूरी कोशिश
करै सै
प्यार करण खातर
उनका धड़कता रहवै
सै दिल
अर सोचे जा सै
मनै कुछ नहीं
चाहिए बस प्यार
अर रोटी
ये दो चीज सै
मेरे जीवन में
लेने के लिए
इस खातर भी
पूरी मेहनत करणी
पडी अर
खाणी पडी डांट
फेर भी ना होरी
मेरी पूरी रोटी
ना होती मेरी
पूरी रोटी।

’’’’’’

देश का हाल
जित भी देखे उड़े
सब कुछ बदलता
लाग्यै सै
मेरे देश में

सब
टेम पुराना याद आग्या
कितने काच्चे काटे करते बचपन के टेम में
हरकत का कोए काम नहीं था भाज्या हाडया करते टेम तें
किते-किते ठाकै ल्याया करते, माचिश के ताश बणाया करते
चार बजे उठ के भाज जाया करते मोर के चन्दे ल्याया करते
तख्ती बस्ता ठाकै नै आपां स्कूल में जाया करते
मीहं बरस ज्या स्कूल के टेम या आपां चाहा करते
पहाड़े कविता सुना कै नै पिटण तै बच जाया करते
जोहड़ था राह में उसपै तख्ती पोत ल्याया करते
राजा की रानी म्हारी तख्ती कब सुख्ये
सुख्ये तख्ती पाच्छे मास्टर पै भरवाया करते
लिख के तख्ती पोत कै फेर सुखाया करते
किताब नई आते ही उसपै जिल्त चढ़ाया करते
जिल्त चढाकै किताबा पै पूरे साल निफराम होया करते
बोतल की बर्फ, अर बालां के मुरमुरे खाया करते
सबके टीवी ना होया करता पड़ोसियां कै देखण जाया करते
कदै वी सी आर, कदे चित्रहार तक देखण जाया करते
जै ना देखण देवे टीवी तो ट्रांसफारमर का हैंडल गैरा करते
इतने हामी ना करते इतनै हैण्डल धौरे रहतेे।
दोफहरी के मैं मैंस खोल के जोहड़ पै ले जाया करते
पकड़ पुछड या बैठ के उपर फेर जोहड में बड जाया करते
कदे-कदे तो जोहड में न्हा के स्कूल जाया करते
तफरी आके स्कूल तै गुड़ गेल्या रोटी खाया करते
सांझ ने मिलकर सारे लुका छिपी पुलिस चोर खेला करते
कदे धनपत की कदे चन्द्र की कदे मां सिंह डाटा नै झेल्या करते, किसे की छात पै किसे के चौबरे किसे के सोपै में लुक जाया करते, बुआ, बापू, मां अर काका खूब लाड लडाया करतते
इनमैं तै करता कदै पिटाई दूसरे धोरे जाया करते
खेतां कान्यी जाकै नै टूबल, नहर कुई पै न्हाया करते
रोटी पै घी धरके नै चुल्हे धोरे बैठ खाया करते
सोवण की तैयारी होवे जिब दादी-दादा कहानी सुणाया करते
ना आवै लैट तो, बिजणा तक हलाया करते
थोड़ी-थोड़ी हवा मैं भी फेर सो जाया करते
आंख खुले जब तड़कै नै सारे उठै पायाय करते
अपनी खाट पै तै उठ कै ने दूसरी पै सो जाया करते
अपने गुद्दड़ पडे रहै मुश्कल फेर ठाया करते
खान मनजीत भी बचपने मैं खूब हसाया करते
चाचा नै बेटा कहकै फेर जिस्सा लाया करते
बावहड कै वो दिन आज्या न्य रहवै दूसरे नै कहते।
बीत गया जो बचपन बोहड़ कै ना आया करते।
’’’’’’
सीख
हामनै कदे
भी ठुंठा पेड
की ढाल नहीं
होना चाहिए
क्योंकि
हमेशा निडर रहवै
अर बना रहै
ना कदे उसने
हवा हिलावे
ना तुफान तोडे़
ना आंधी में हाल्ये
ना किसे के आगे झुके
चाहे बेशक टुट जाओ
चाहे बरसा बरसे
यू कड़े ना तरसे
जितना जल्दी भिगेे
उतना जल्दी सुखे
कितनी ए मुसीबत
आ जावै
इनके मुंह तै आह ना निकले
ना कद मरण का डर
इसे जीवन का कैकरा
हमेशा सिर ऊंचा घमंड़
मे राख्ये, खुद ठोकर खाकै
अर जमी पैपडे, ना देवे कदे भी छां
ना देवे कदे भ्ी फल
फेर बता तु क्यूकर हो सकता
हर दिन नया तु
क्यूकर देवे
नये फूल नई सुगंध
किते देवे
हमेशा हामने झुकना
चाहिए
फलों की तरह लदना चाहिए
समाज में भी नाम जमाणा चाहिए
मनजीत भी इस काम मैं
लाग्या सै
हमारा भी जीवन कुछ इसा ए हो
इसा-स-हो
’’’’’’
आवाज
हवा की आवाज
आपां नै सुनसान
क्षेत्र में सुणै नै
जब कदे कदे खुली
किताब को एक-आधा
पन्ना जिब हबा
लाग्ये अर
फड़फड़ावे
अर किताब की
चुप्पी ने तोडे से
ब्होत घना जोटा लाकै
फेर उसकी चुप्पी
थोडी ही टुटे से
पर
हवा तो घणी
हठीली सै
एक पन्ने पलट से
दुबारा ना दिखती
ना सुनती आवाज
क्योंकि किताब मूक
सै ना बोल्ये
ना देखे
पर दुसरे के शब्द
दे जावै सै
किताब मूक सै
शब्द भी मूक सै
जिब हम इन्ने
पढ़ा तो
वह भाषा बन जावै सै
फेर किताब और
शब्द दोनों बोलण
लाग्य ज्या सै
अपणी-अपणी आवाज
देवे
यही तो इसका
बड़प्पन सै
जो खुद तो मूक रह
अर बधिर रहवे
पर दूसरे न
या बोलना अर
सुनना दोनों बतावे से
फेर इसकी आवाज
दूर तक जावै सै
दूर तक जावै सै

’’’’’’

भाव
मन कै भाव नै
यू बस जी करग्या
कागज पै तारण का
जीवन के हर
पहलू का
सुख का
दुख का
लेखनी की नोक से
उन मुलायम
लचीले कागच
पर कुचरता हुआ
हर दुख
हर कष्ट सहा
दुखों से डरकर
मन्नै कदे भी
किसी का बुरा नी सोच्या
ना कदे चाहया
बस मैं भी एक
दुनिया अभिन्न अंग
बन जाउं
कोरे लचीले
साफ कागज पर
मैं अपनी कलम
की लेखनी से
कुतरता हुआ
सोेपता हुआ
एक नई
पहचान देता
हुआ
लिखता गया।
यू मेरे
मन का
भाव सै

’’’’’’

मेरा देश बदल रहा सै
एक गाबरू जवान
ना बुढ़ा ना बालक
सड़क पर इधर
उधर घुमता फिरता
साथ आपणे बालक
पत्नी
उसकी दशा बिल्कुल
जलील प्रकार
की थी
उसका चेहरा भी
मुरझाया हुआ
एक अलग ही
बात बतावै सै
नया भेद छुपावै सै
नीचे लूंगी बाध रया से
आपणी छाति पै
पत्नी की चुनरिया
लपेटरया सै
एक कन्धा तो से
खाली
दूसरे में से
शायद बिस्तर
अर केवल
पैरां से उनकी टुटी चप्पल
बाल सै उनके बिखरे हुए
चौड़़ा सीना सै
आंचल भी साफ दिखै सै
एक छोटा सा
शर्मलाज कपड़ा
जो लपेटे हुआ
था अपने तन
पर
वो कपड़ा कभी
इधर उधर खिसकता
अर उसकी पत्नी
भी उसकी उम्र
मैं थी
शायद उसके छह बच्चे
वो भी इधर-उधर
भटक रहे सै
आगे पीछे घुम रहे सै
बन्दरों की तरह
भाग-भाग कर
वो कागज-चुगते हैं
बड़े की उम्र शायद
पन्द्रह की होगी
पर छोटा
तो अभी भी
दुध पी रहा से
बच्चे कुछ
कच्छी में
कुछ निक्कर में
कुछ नंग-धडंग
सारे बच्चे का
भविष्य
आज के बच्चों का
भविष्य
शायद कागज चुग रहा सै
देखो कहवै नै
मेरा देश
दिन दुनी
अर रात चौगुनी
तरक्की पै सै
जब देश ही
भविष्य सड़कों पर
कागज के टुकड़े
ठा रहा सै
तो मेरे देश
का हाल क्या होगा
खूब तरक्की कर रहा सै
सचमुच मेरा देश
बदल रहा सै
बदल रहा सै

’’’’’’

खामोश
गुण्डा गुर्दी करण आले
तो अपणा बेगुनाह
का सबूत दन्दे
हाण्डे सै
हर वक्त
पर बेगुनाह
धोरे कोए सबूत
नहीं होन्दा
बचण का
तो कै पूरी
उमर आपां
न्यू खामोशी
मैं गंवा द्या
क्या खामोश
रहना ऐ हमारे
खातर
बढिया सै
इस समाज में
’’’’’’

चार काग
घणे तो नी कह सकता
पर चार काग थे जरूर
जो उडन की त्यारी
मैं वे
उन्नै बढिया ढंग तै
उडे, रूके, खाया
फेर गया
इसा जणू कोए
कागां का त्योहार
आग्या
कदे-कदे तो उन
कागा ने जादू
लाग्ये सै अर
कहै से के
म्हारे तै बड़े
तो इस दुनिया में
सै जो सरताज सै
हाम तो उनके
नौकर सै
चील, गरूड़ अर बाज कै
हंस मोर गोरैया भी
सुन्दर सै इस जग मैं
जी आपने हाथ जोड़कर
विनती करै से
अक हुक्म होया सै
चातक पंछी तै
रट नहीं नहीं
लगाओ
काग कहवै सै उन्नै
ताम पिहु पिहु तो
छोड़ दो
अर कौये
कौये गावा
गाण लाग ज्यावां
घणीये ढ़ाल के
काम दिये गौरैया ने
खाना-पीना अर
कर मौज मस्ती
जीसा लेना
जी घुट मुट मैं यो
को कौये की ऐसी
मौज आग्यी
कै उनकी तो
पांचो आंगली घी मैं सै
घणे पंछी आए
जो कागां की हुकूमत
तै उडन लाग्ये
उनसै तो उडन के भी
नियम बना दिया
क्यों बैठा ठाली
एक दिन उन कागा
ने दैख मेरे मन में
भी उत्सुकता झलकी
अर सोचा तुम भी
मेरे घर आना
वो मुंडेर पै टायं, टायं
बोलना।
’’’’’’
सुख
लाम्बी सर्दी खतम
होण के बाद जब
वो हल्की-हल्की
गर्मी चमकता सूरज
निकली धूप
एक छोटा सा टेम
का टुकड़ा
मुश्किल बचपन
कठिनाई की भरी मीठी याद
चालती बस रेल तै
हाथ बाहर काढणा
उस हवा का धपू
का स्पर्श करवाना
अनेक सवाल खड़े होणा
फेर घणीये मुश्किल
तै मिला सै
उसका जवाब
तन्हाई की कारागार
मैं पड़ा सै
वो कैदी
जो के बाहर
लिकड़ना चाहवै सै
इस दुनिया मैं
आना चाहवै सै
वो भी
सुख का जोहड
पहाड
अर प्राकृतिक
सौन्दर्यता
का जीसा लेना चाहवै सै
चमकती होयी
चिंगारी
कठिन तै कठिन
दिन गुजरना
कुछ पल खातर
वही रूकता टेम
लडियों के बंधन
मैं बेधकर
सुख के दोन
टोहण की खातर
घुम्मे सै
इधर उधर
सोचां इतना सुख
लड़ा सा, जीवां सा
अर टेम आण
पै सुख तै मरां सा।

’’’’’’

दुख
अकेला पड़ा रहा
अर दिमाक मैं
अनेक तरहा के
सवाल खडे होवै
अर मन्नै वो
घोर के खड़े कर दे
उनने मारता, तोड़ता
अर रोज-रोज
जीण तै जो
दुख तै उसनै
आपणा भाग्य
मान ल्याया
अर उस भाग्य तै
जिया जा सकै सै
पर वो भाग्य
मेरे खातर बुरा सै
असहनीय सै
उसने दोस्ता के साथ
जीना चाहू सू
कदे न कदे तो
यू दिन भी देखणा
पडेगा
जीवण जितना
घणा सरल सहज
होग्या
उतना मानव बणेगा
फेर बांटे-बांटे दुख रहवेगा
उतना जितना आप
सहन कर सको
जो आपने बुरा नी लाग्ये
काफी सारा दुख तै
कपूर की भांती
उड ज्यागा
दुख की इस कठिन
बारिश में
जीवन की सीपी
अर उसकी शक्ति
अर मोती
टोहण में एक सारा
टेम खराब हो ज्यागा
अर एक प्रकार तै
नये सुन्दरता
के बीज
बीज्यगा
नये बीज
बीज्यगा

’’’’’’

सिलसिला
मेरा जो
खाली पडया
जीवन सै
उसमंें नये
विचार लाणे पडगे
अी तुफानी मन
नै भी स्वीकारणा
पडेगा कै
मन्ने जीवण में
बहुत उंचे जाणा सै
अर उस लक्ष्य तक
पहोचणा सै
लेकिन उस खातर
मेरी सारी उम्र लाग्य ज्यागी
संघर्ष करण का
भी सिलसिला
सदा जारी
रहवेगा

बस
बस ब्होत होलियों
जुलम इस जमाने में
मैं नहीं सहूं
जुल्म
पूंजीपतियों के
जो न दिहाड़ी
देवे वक्त
पर
ना भर सकै
अपना बालकां
का पेट
कारनी पड़े
सारी हाण
गुलामी
पर आजाद
देश में
अब भी
मजदूर तबका
गुलाम सै
अर बणा राख्या सै
इन पूंजीपतियों ने
दिमाक तै गुलाम
अर बन्द कर
राख्या दिमाक का काम
दिमक लागरी सै
दिमाग कै
उस दिमक
खातिर
ना तो
कीटनाशक दवाई
का असर
ना किसी अन्य
नशीली वस्तु
जो प्रतिदिन
नशे के रूप में
ली जावै सै
या इसी गुलामी
कब तक
हम अर
म्हारा समाज का
दिमाक जंजीर
में जकड़ रखा सै
किसी ने जात के नाम पर
किसी ने धर्म के नाम पर
या किसी अन्य तरह
से कर प्रताडि़त
हमने ये जो उच्चवर्गीय
तबका जो हर
प्रकार से बेहतर
है उनके जंजीरों
में आज भी अटके हुए
से हमारे दिमाग
बस…… क्यूकर निकला

’’’’’’

मानव कब आजाद होगा
इस संसार में
चारों तरफ से
घिरा हुआ
इंसान
कही परिवार में
फंसा सै
कही रोजगार में
फंसा सै
कही यात्रा में
फंसा सै
कभी-कभार
गृह-क्लेश
जो कमाते
हुए भी
बीबी मेरे
व बच्चों के
साथ झगड़ती
रहवै से
इस गृह
प्रवेश से
अच्छा सै
बिना घर
वाला क्योंकि
वो अधिक
मेहनत नकर
भी मानव
आजाद रहता है
उस व्यक्ति
को भी घ्ेार
लेते हैं
इस समाज
के लोग
कर लेवे
है उस पै
भी कब्जा
पता नहीं
कैसे कैसे
लोग
समाज
में
जो परिवावाद
क्षेत्रवाद
को छोड़कर
भी वह
इसको
मानवतावाद
की तरफ
धकेल देता
है जो दिमाकी पिंजरे
में बन्द अर
करता रहै
बाहर लिकड़न
की कोशिश
फिर भी
मानव आजाद सै
मानव आजाद सै
मेरे इस
संसार में
इस मुल्क में।
’’’’’’
पशु समझते हैं
जब दिमाकी
बन्धन में
बंधकर
मानव
बन्धमुक्त
होना चाहता
है
समाज
उसे
पशु समझता है
कभी गधा
कुत्ता व
अन्य जानवरों
के नाम
लेकर पुकारता
है तो वो
मानव
लेकिन उसका
दिमाक
का रिमोट
किसी अन्य
के पास है
जिस तरह
रिमोट को
चलायेगा
उसका दिमाक
भी एक
दूरदर्शन या चलचित्र
की भांति
बदलता रहेगा
दिमाग में
कभी
नृत्य, गाना
खेल,कूद
आदि कार्यक्रम
चलते रहे
उस अमीर
व्यक्ति के
भांति
जिस तरह
वह उसको
चलता है
उसका
काम होने के
बाद
फिर कहवै
से तु
गधा, मूर्ख
कुत्ता आदि
शब्दों
का सम्बोधन
कर पुकारते
है इस समाज
में
क्या इस पशुता
से बाहर निकलेगा
कब निकलेगा
घन्टों महिनो वर्षाें
शताब्दियां बीत
जाएगी पशु से
मानव होने में।

’’’’’’

कारखाना
सुबह जल्दी से
अपनी बीवी को
कहकर दिन को
भोजन तैयार
कराकर
तब कारखाने
जाकर अपनी
मेहनत करनी
उन मशीनों
पर जो हमेशा
छटपटाती रहती
है
एक अजीब सी
आवाज लेकर
जो कानों को
बहरा
आंखों को
अन्धा
व खड़े रहने
से
पैरों से लंगड़ा
तब दिमाक
भी उसे कारखाने
की तरह
नहीं चलता
नहीं दिमाक में रोशनी
दिमाक के सभी
कल-पुर्जे
कारखाना मालिक
के पास जमा
कई साल
सै
बाद में
कहता है
अब तुम से
काम नहीं होता
न ही मेहनत
के समय पर
पैसे
येें है कारखानों
के हालात
और
आज की व्यवस्था
जो गरीब
तबका
बदलना तो
चाहता है
वही राजनीति
घुस जाती है
उसका नकारे
मे और
घर बैठ जाता
है लंगड़ा, अंधा
व बहरा बन
पूरा परिवार
उसे पागल कहकर
चिड़ाता है
ये कारखानों का
नतीजा।
’’’’’’

महिला
पूरे दिन
घर का काम
कर
झाडू, पोचा
सफाई
खाना, चाय
दोपहर व
रात्रि भोजन
खिला कर
सभी को
अपनी खाटो
पर सुला देती
है वह महिला
जब
उसको अहसास
होता जब
उसकी सास
ननद, देवरानी
जेठानी व
घर के तमाम
लोग उसे
कहते हैं
कि तुम
खाली बैठे
रोटी तोड़ते
हो वह
आंखों से
अश्क बहाकर
चुप
गुमसुम
होकर
अपनी ओढनी
में सिर
छुपाकर
फबक-फबक
रोती है
बिलखती
तो उस
वक्त
उसे दिलासा
देने वाला
कोई नहीं
उसका पति
भी साथ छोड़
देता है
घर समाज
के कहने पर
ये है आज
भी महिला
की स्थिति
इसका
सशक्तिकरण
बहुत जरूरी
है
यह बताना जरूरी सै
समाज के
घर कोने
तक पहुंचाने
के लिए
और
बताने के
लिए
अब महिला
महिला नहीं
बल्कि
एक
साहसी
नागरिक
बन गई है।

’’’’’’

झलक
मेरी जुबान तै मीठी नहीं सै
पर मेरा दिल मीठा सै
कभी भी कोई कुछ
कह देवे तो उसका हो जावै सै
यहां पर तो मैंने देख्या सै
एक बड़ी अजीब सी दास्तां सै
हंसला तो लोग जलै सै
अर कठिनाई भुगता तो अनेक सवाल करे सै
अपने ही अपने को लुट लेवे सै
या प्रथा काफी पुरानी सै
लेकिन जिक्रा इसका ईब होण लाग्या सै
गेरों को पता नहीं चाले
कि इस दिल की दिवार कितनी
कमजोर सै
अर कहां तै सै
नफरत के बाजार में
जीना का अलग नजारा हो सै
लोग तो रूलान की कोशिश करे
हाम फेर भी हांसे जावां सां
मेरी तो पुरी जिन्दगी बदल गयी सै
कुछ ढंुंढण में।
ढुंढना क्या सै इनकी अभी
खोज करण लाग्यरया सूं
लेकिन मैं के करूं
जिसने ढुंढण की
तलाश करां वां
तलाश एक तरह सिमट कर
रह जावै सै
इस सकून मैं
फेर सोच्यां सा
कि जो मिला सै
वो कहां से ल्याया
था
कहां लेकर जावेगा
अगर मैं फुर्सत
निकाल कै अपनी
महफिल जमाण लाग जाऊं
तो
लौटते समय अपना दिल
नहीं आवंगे, सीने में।
मेरी आवाज को तुम
महफूज कर लो
क्या पता महफिल में
कब सन्नाटा हो जाये
ये सै जिन्दगी के कुछ
पल की झलक
बातें बीती
आज जब अपने
पुराने दिनों की
ताजा करने को
स्कूल की चार
दिवारी के अन्दर
जब मैं घुसा
तो एक टक
उसे देखता ही रह गया
मेरी आंखें चूंध गई
मेरे को लगा कि
कही दूसरी ओर
घुस आया
क्योंकि
जहां मैंने शिक्षा
ली
वो ओर स्कूल था
गेट भी नया
दरवाजे भी नये
कमरे भी नये
केवल जगह वही
न वो विज्ञान कक्ष
न पानी की टंकी
न वो शिक्षार्थी
न वो शिक्षक
न वो चपरासी
न वो लिपिक
वहां ऐसा लग रहा था
जैसे शहर की
हवा गांव के
स्कूल को लग गई हो
मेरा स्कूल
काफी बदलता
हुआ महसूस
कर रहा
हूं
आज के युग
जैसा
न वो मित्र
न वो पढाई
न वो पेड़
न वो मैदान
सब कुछ बदलग्या
मेरे गांव के
स्कूल का।
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, भावड़
’’’’’’

मेरा दुख
म्हारे देश में
आपणी-आपणी कहानी
सुणावै सै
अर अपने रोले-रोवै सै
मेरे ढब्बी ब्होत घणे
थे उन में तै एक
मेरा घणा प्यारा ढस्बी
जो आज मेरे बीच में ना सै
जो कदे भी लौटे कोनी आवै
उसका कै नाम, सै
उसका मेरे साहसी नाम ना लेवो
वो तो मेरे भीतर दिल में बैठा सै
वो लिकड़ कोन्याी
क्यू प्यारा इतना था मेरा ढब्बी
उसनै तो मेरे भीतर रहण दै
कदे वो बण कै राख
हवा के गेल्या उड़ ज्या
कदे बिखेर न दे मेरे ढब्बी की
यादां नै
म्हारे दिल मै रहण दे उसकी
याद नै ना घाव होने म्हारे
दिल में ना होण दे छेद दिल मे
मेरे प्यारे प्यारे गरीबी तै
झुलसन आलै आदमी
गौर तै ध्यान लगा कै
सुन ल्यो
मन्नै थारी ये चिन्ता घणी सै
क्यू इस भीड मैं थारी
कोए गिणती ना
मैं भी योह सोचू सूं
कदे उस मेरे ढब्बी का
नाम भी भूल ज्याउ
इस भीड़ मैं
मन्ने डर सै कदे
हाम ना भूल ज्यावां
उस जाडे़ की इस बरसात
अर आंधी के मौसम
नै जो आज भी मेरे
भीतर घाव पैदा करै सै
मन्नै भय सै
उसकी उम्र तै
एक ऐसी कली जिसकी बरसात
तक याद नहीं
कदे चान्दनी रात मैं
महबूबा के संग
प्यार भरा गीत नहीं गाया
कदै महबूबा का गीत नहीं सुना
वह अपनी महबूबा प्रेमिका
की तलाश खातर
घणा लम्बा इंतजार नहीं करणा पड़या
उसके ना की तो घड़ी की
सूई तक रूक गई थी
असफल हुए सै उसके हाथ
जो उसकी
दिवारों के पास नहीं पहोंचे
उन खातर उनकी आंखा में
अनेक इच्छाओ की किरण
थी जो आज तक अर
अभी तक नहीं डूबी थी
वह किसी लडकी को
चूम नहीं सका
छू नहीं सका
वह नाही कर पाया
किसी के साथ ईश्क
उसने आपणी जिन्दगी में
दो बार ही भरी आहे
एक तो हमेशा लड़की खातर
पर उस पर की उसनै
वादे खासा ध्यान नहीं दिया
वह अभी बहुत छोटा
था उसे आस थी
उसने आपणे
उम्मीदों में रास्ता खोजण की
म्हारे देश मे
बस आपणी आपणी रागनी
गावै सै
जद वो दूर चला गया तो
उसकै मां तै बिदा ना ली
अर ना आपणे
ढब्बी तै मिलां
किसी से उसनै कुछ नी कहां
ना ही उसनै कुछ शब्द बोले
एक शब्द भी नहीं
वह डर सा गया था
कि उसकी बूढ़ी मां
उस खातर लम्बी
रातां नै आसान करण
की सोचे सै
जो आजकल
अफसोस तै बात करती
रहवे
उसकी चीजा नै
कदे अलमारी तै
कदे खाट के तकीये के नीचे से
कदे उसके सूटकेस तै
चीजा नै देख्या सै
उस नै देख कै वो बेचैन
सी होज्या सै
अर कहवै सै
अरी ओ रात
ओ सितारा
ओ खुदा
ओ बादल
कदे तामनै मेरी उड़ती चिडि़या
को देख्या सै
मां की आख्ये चमकते सितारे
की भांति रहवै सै
हाथ उसका फूला की डाली पै
अर उसके दिल में चांद, सितारे
भरे पडै सै
अर उसके केश हवाओं में
फूलो की तरह झूला बनकर
झूल रहै सै
क्या तुमनै उस राहगीर
मुसाफिर शरणार्थी की
देख्या सै
जो अभी भी यात्रा करण
खातर तैयार नहीं सै
वह अपना खाणा लिये बगैर चल्या गया
कौन खिलावगा उसने खाना
क्यूकर मिटेगी उसकी भूख
कोण देगा साथ उसका
रास्ते में
जो अनजान बनकर
खतरों के बीच
खड़ा सै मेरा लाल
अरी ओ रात
ओ सितारे
ओ गलियां
ओ बादल
कोए तो उसने जोकै कह दो
कहवै सै के म्हारे पास
इसका कोए जवाब कोन्या
ब्होत घणा बड़ा से
यू जख्म, घाव
आंसूओं से
दुखों सै
अर कष्टों से
नहीं बरदाश्त कर पावेगी
तुम मेरी सच्चाई
क्योकि तेरा बच्चा मर
चुका सै
ऐसे आंसू मत बहाओ
क्योकि आप अपने
आंसू बचाकर रखो
शाम के लिए
कल के लिए
जद सड़का पै मौत ए
मौत नजर आवेगी
उस बख्त खातर
जद ये भर जावेगी
तुम्हारे बेटे जैसे राहगीर
की तरह
तब तुम अपने आंसू
पोछ डालो
अर एक स्मृति चिहन की
तरह उन आंसुओं नै
सम्भाल के धर द्यो
क्योंकि वो कुछ एक
आंसु अपने प्रिय जन
की स्मृति चिहन की तरह
बचाकर रखना
जो पहले ही मर चुके सै
मां तु आपणे आंसु ना बहावै
इन्ने बचाकै रख
कल खातर खातर
शाम खातर
क्योंकि इन आंसुओं की
जरूरत मेरे बाप नै
भाई नै
अर बहन नै
अर दोस्त नै
भी पड़ सकै सै
इस काम खातर
मां आपणे आंसू बचाकर रख
कल खातर
म्हारे लिए
समाज के लिए
म्हारे देश मैं
लोग मेरे दोस्त के बारे
में ब्होत घणी ये बात करै सै
कैसे वह गया
क्यूकर गया
क्या वह लौटकर आवेगा
कैसे उसने आपनी जवानी खोयी
गोलियां की बोछार नै
उसके चेहरे को
अर छाति को बींध कै
रख दिया
बस मत कहना
मैंने उसका घाव/जख्म
देख्या सै
उसका असर आज भी दिखै सै
कितना बड़ा था वो
जख्म
मैं अपने दूसरों बच्चां
खातर सोचूं सूं
अर हर उस औरत खातर
जो बच्चा अर गाड़ी ले के
चल रही सै
ढब्बीयों यू मत पूछो
यह कब आवेगा
बस यू ही पूछो कि
म्हारे देश के
लोग कब जांगेंगे
कब उठेंगे।
कब उजियारा होगा।

’’’’’’

सपना
एक ईसी थी लड़की
जो शादी के बाद
अपनी सुसराल में
जाकै वो
औरत तो बन
गई
फेर उस का
मन था
किसी ओर
के साथ
शादी रचवाने
का
उसका मन था
हंसकर जिन्दगी
गुजारने का
फिर उस
औरत नै
अपने पति के
घर से झगड़ा कर
वह लौट आयी
बाबुल के
घर पर
लेकिन
फिर जाने का
नाम नहीं लिया
उसके क्योंकि
उसका मन
नहीं था
उसका प्यार
नहीं था
जो खुशियां
दे सके
थोडे़ से दिन
बितने के बाद
उसका पति
दो-तीन रोज
के लिए
उसके पास
आया
बोल्या
कि
हे प्रिय!
तुम मेरे
साथ चलो
मेेरे साथ
रहने में ही
भलाई सै
क्यो
मेरी पत्नी
पूरे भरे समाज के भीतर
बनी थी
लड़की बोल्यी
अगर
तुझे रहना
सै तो मेरे
पास आकर
अपनी सुसराल
में रहकर
देख
उसका
बहाना था
क्योंकि उसने
मुझे लगाता
है कोई दोस्त
था जो उससे
प्रेम करता था
क्या प्रेम करना गुनाह है
फिर तो
मां-बेटा
बाप-बेटा
मां-बाप
भाई-बहन
ये भी तो प्रेम करते हैं
अपने जीवन मे
उस लड़की ने
कुछ दिन अंतराल
के बाद
उसके पति
सो रहे थे
उसे चाकू से
कर वार
सुलाने की
सोची
फिर कुछ चोट ही पहुंची थी
उसको
फिर कहता
बता बात
वो कहती
मैं तेरे साथ
नहीं मेरे दोस्त के
साथ रहूंगी
मेरे माता-पिता
को भी बताया
फिर क्योंकि मुझे सताया
तुम्हारे चक्कर में लगाया
क्यू खर्चा ठाया
क्या मेरा अधिकार नहीं
मनपसंद शादी करने का
क्यूं लड़कियों के
सपने को कोस
रहे हो
पूरा होने दो उन
सपनों को

’’’’’’बारिश
साढी काटण का
टेम था अर
उपर तै
बारिश आयी
बारिश ने
सारे अनाज
में पानी कर
दिया
टपक-टपक टपक
घर, मकान, दुकान
सब के
सब ठण्डक
में ठिठुरते
क्योंकि अब
ठण्ड का समापन
अर
गर्मी का आवागमन
था
इस बीच करां
सै यू वर्षा
जो
बादलों की
भी परिभाषित
नहीं कर पाया
यू समाज
छन-छन-छनकता
रहा
टप-टप-टप
गिरता रहा
पानी
खेत में
पेड़ पर
छत पर
क्योंकि
अब
फागुन
को
जाना सै
चैत्र को
आना सै
अनेक प्रकार
के मोती
बून्दी रूपी
जो पूरे
धरती पै
सफेद जाल
बिछा दिया
उन ओलों का
जिससे पकी
गेहूं की या
साढू की
फसल
गिर कर
किसानों
की दिल
की धड़कन
जोर-जोर से
धड़कनें
लगी
अब तो
उनको
आवाज
भी महसूस
हो गई थी
दिल धड़कनें
की
फसल खड़ी
सड़ने की
ना बाजार भाव
ना मजदूर
ना सही फसल
ना सूखा
सभी खेत में
पानी-पानी
भरा
चमकीली,
दमकीली
बिजली
दिखाई
दे रही सै
जैसे मेरे
पास में
पड़ी
ना वो रात
चान्दनी
आन
बान
शान
जमींदार
की धर दी
ठाकै
इस मींह
ने बरसात
नै
जो अगली
फसल तक
मौका नहीं
मिला फसल
जुताई का
ये है प्राकृतिक
दिशा और
दशा
अब तो
पत्थर
टेक
दिल पर
संतोष कर
बैठा था
कभी तो
फसल अच्छी
होगी
और क्या
करना
बस
यही
ख्याल
बार-बार उमड़ता
है।
’’’’’’
खून
नये कपड़े पहन कै
कै यूंू सोच ल्या
की मेरे भीतर एक
नई सोच जाग्गी
जो इस धरती
पै खून होवे
बहुत सारे
क्यों तुम इन
सारे खून के धब्बों
को छुपा लोगे।
तुम इन गरीबी
की बस्तियों की
जलाते रहै
हत्या करते रहै
किसी को विधवा
किसी को अनाथ
कोई विधुर
कोई अपंग
तुम नै क्या दिया
गरीब को केवल
खून और
वह भी वक्त
आने पर बहा दिया
तुमने
तुम ही उन्हीं
के घरों को जलाते हो
और बरसों तक
उनके घरों की
राख ढोते-ढोते
लग जाता है
उन जलते घरों
के चिरागों से
तुम अंधेरा दूर
नहीं कर सकते
तुम्हें सदा
हमारे बच्चे कोसते
रहंेंगे
तुम्हारे पैर
कांपते रहेंगे
इस धरा पर
और भी
इन घरां में।
आंसूओं की
नदी
सिसकती
मां, बहन, बेटी
बच्चा, पिता
आखिर कोई तो
है उस घर का
सदस्य जो बचा सै
केवल आंसू
बहाण खातर
तुम्हारे दिल ने
क्यूकर सकून मिले
जब तक
मन्नै सोचा उस
समय धर्म
एक प्रकार की
शराब सै
जो बांटा गया
नशा भी होया
इस नशे में बहुत
कुछ लुटा भी दिया
तुमने
इस नशे ने कभी
जाति की संज्ञा
देकर कभी
गरीबी की संज्ञा
देकर समय-समय
पर प्रताडि़त करते
रहै इस गरीब शराब
की बोतल पिलाकर
मन्नै हर एक फूल
मैं हर अलग-अलग
रंग भरने की कोशिश
करी क्योंकि
वो फूल भी
आज धोखा दे गये
न जाने कितनी आशाएं जला दी
निराशा उत्पन्न करा दी
कितने बागों मैं नफरत के
बीज बोये
नफरत की फसल खड़ी
अब कैसे कांटू
मुझे अब झूठी
और मक्कारी
बैसाखियों पर चलने की
आदत डाल ली सै
मेरे अब पैर
निकल आये
पता अब क्या होगा
क्या होने वाला है
इस शराब रूपी समाज में
तुमने घर, गांव और
शहर को जलाकर कहां
तुम्हें खिदमत की
जरूरत है
समाज को भी
मुल्क को भी
तुम्हारी हर सांस
मैं मेरा दिल धड़कता है
तुम्हारे कदम मेरी तरफ
बढ़ने लगे हैं
तुम ये भूल जाओ की
मैं तुम्हारे साथ हूं
यूं भी भूल ज्या
मैं तुम्हारे साथ चलूं
तुम्हारे अन्दर बिना
धार का खंजर/चाकू
है त्रिशूल हैं
जो हमेशा चमकता
रहता है गरीबी की
जान लेने के लिए
उन आग के शोलों
के लिए जो तुमने
हमारे अन्दर पैदा किये
क्या अब भी हम
तुम्हारे साथ चलेंगे
अब तो हर आदमी
में तुम्हारा नाम
उत्पन्न हो रहा है
केवल आंसुओं
से हमारा दिल नहीं
बहकने वाला सै
अब तुम्हें वतन को
तोड़ना अर
टुकड़ों में बांटना
ही तुम्हारा काम रह गया सै
मैं तुम्हारे साथ चलूं
तुम्हें मौका दूं मेरे साथ
चालन का यह नहीं हो सकता
वहीं करोगे जो आज की
नस्ल मानती है
तुम हमारे अन्दर नफरत की
पूजा भरदोगैं
जो इस पूजा नै सारे
देश पूजेंगे
मैं कैसे लाकर दूं हर फूल को
अपना रंग
मैं आज कैसे होने दूं
अपने सै धोखा
तुम नये कपड़ों में
ढक तो सकते हो
लेकिन तुम्हारी करतूत नहीं
ढकी जा सकती
ये मैं अपने जहन
सोच, तरीके छुपा नहीं
सकता तुम्हारे से
बदला लेने का
क्योंकि तुम्हें इस
कपड़े के अन्दर
अनेक खून के धब्बे
छुपा रखे हैं
जो साफ दिखाई
देने लग गये
है।
अब हमें इन
पूंजीपतियों के
राजनेताओं के
’’’’’’

बांट दिया
इस सियासतों ने
हम सबको बांट
दिया
सियासत नहीं
बांटा हमारे
खून का रंग
खून का समूह
जो सबसे गाढ़ा सै
जो कदै छुटे भी कोन्या
क्योंकि इन का हुनर
सिखा ही नहीं
तुम्हारी सियासत नै
तुम खून को
अलग करो
ग्रुप तो अलग
है लेकिन
रंग नै
अलग करो
तब देखेंगे
तुम्हारी सियासत
मैं कितना दम सै…वो रात
मैं अनजान जगह
जहां दूर-दूर तक
अंधेरा बन
पहाड़ी
डरावनी आवाज
झरने का
चलना
मुझे
उस रास्ते
चलते-चलते
ठोकर लगी
लगा
कि यहां किसी
व्यक्ति की कब्र सै
जो अनजान
बिना नाम
उस पर
लगा हुआ से
एक चान्द तारे
का निशान
लगा देखकर
मैं वहीं रूका
सोचा इसके
मरने के बाद
भी कब्र को
भी बांट दिया
किसी पर क्रोस
का निशान
पर किसी
को चान्द सितारे
का
ये क्या बयां
कर रही है
उन जीवित व्यक्तियों को
जो अब चल रहै
इस धरती पर
वहीं पास से एक
झरना गिरता
तालाब मैं
पता नहीं क्या है
यह दृश्य
जो आने जाने वाले
के पहुंच से दूर
मैं कई सालों
बाद पहुंचा वहां
पर
उस समय कुछ
जवान छोकरे
हंसते-मुस्कराते
अपने-अपने
अन्दाज मैं
नये-नये
गाने सुर ताल
से गाते
वे छोकरे
उस झरने
पर खूब नहाये
और नहाते
नहाते
गीतों की
गुंजन दूर
तक थी
ऐसा लगता
जैसा कि
सभी गीतों
का भण्डारण
अपनी आवाज
के माध्यम से
उड़ेल देंगे
उनको कोई
चिन्ता नहीं थी
सब कुछ ठीक-ठाक
लग रहा था
सब जगह
उन्होंने ही
बिताया अपनी
जिन्दगी का
एक दिन
उस तालाब,
झरने,
कब्र सब के
साथ
उस दिन
उनके अन्दर
मन ही
मन
खुशी की
लहर थी
उन्हें इंतजार था
शाम
घर लौटने के लिए
शाम हुई
उन्हें अपना पथ ढूंढा
और शायद भटक गये
वो अपना रास्ता
भूल गये क्यू के
फिर अन्धेरा
छा गया
चान्द उगने वाला था
चमकते हुए
चान्द में उस कब्र
का लाश व चान्द
व जगह
उसने क्रास का
निशान दिखाई दिया
वो उस क्रोस को
अपनी दिशा सूचक
मानकर
अपना पथ नापना
चालू किया
उस कब्र से
उन्हें एक नई
पहचान मिली
क्योंकि कब्र
के उस
चान्द सितारा
व पास में
एक क्रोस
के निशान ने
ही उन्हें रास्ता
दिखाया
उन छोकरों
का उस डरावनी
आवाज
अंधेरा
व कब्र का
चान्द सितारा
वो क्रोस का
निशान जिसने
हमें रास्ता
दिखाया
व उस रास्ते
पर चलते
रहे और
सुरज उगने
का इंतजार
करते रहे
वो दिन
आ भी याद है
’’’’’’
मेरे पड़ोसी
मेरे पड़ोसी
मुझ से
युद्ध करना
चाहते हैं
लेकिन मैं शरीफ
था मुझमें
हौंसला नहीं
किसी से
लड़ाई करने का
वो दिवार पर
लिख देते
कुछ-कुछ
मुझे उसे
आदमी का
पता चला
जो ये लिखता
था वो कहता
मैं लिखूंगा
तब तक
लिखूंगा
जब तक
तुम्हारे और
हमारे बीच
में लड़ाई न हो
क्योंकि मैं
लड़ाई का
इच्छुक नहीं
था।
मुझे उसको
बातों में
समझाया
और मुझे उन्हें बातों
में ही धराशायी
कर दिया
क्योंकि वो
जोश में
था
मैं होश में
ना लड़ाई
हुई ना
झगड़ा
फिर दोनों
मैं सम्बन्ध
हो गया
तगड़ा
दुश्मन
हमारे समाज नै
आपणी खोपड़ी
के अन्दर इतनी
अनाप-शनाप
वस्तु डाल रखी
है जो केवल
अपने ही वर्ग
के लोगों को
लुभाती है
लेकिन उच्च
के पास नहीं जा
सकते
क्योंकि बहुत से
ये बात नहीं
जानते कि
तुम्हारे अन्दर
इस खोपड़ी में
अनाप-शनाप
वस्तु को भरने
वाला तुम्हारा ही
है
वह आवाज
हुक्म देती है
हमें अपने
दिमाक या खोपड़ी
को उनके
अनुरूप चलाने
के लिए
क्योंकि
जिसको
आप अपना मानते थे
एक दिन वहीं
तुम्हारा दुश्मन
बनता है
वो बाद में
समझ आता
है जो तुम्हें
मीठी बातें
बताता है
आखिर वहीं
तुम्हारा
दुश्मन है।

’’’’’’

किसान
किसान का दुख
उसकी दुर्दशा
आख्या का पाणी
उसकी कहानी
कौण सुणे
जाड्ये में पानी लावै
पूरी रात
सी-सी करता रहवै
सारा तोड़ गात
करे खुभात
इसके
कदे छुछक
कदे ब्याह
कदे रहवे भात
इसका साथ
ना कोए देता
कमां-कमां के
ओरा के घर
भर देता
हाथ फिर भी
खाली
सारे कुणबे गेल्ला रोला
या कै सै जिन्दगी
किसान की
ना कदे आराम
दिन-रात काम काम
ना देखे सुबह ना श्याम
जो आवे वो हैं धमकावै
फेर किस खातर कमावै
सारे तेरा करण लाग्ये शोषण
इस समाज ने मरा ठा दिया खोसण
ना होवे मेरे पै बालका को पालन पोषण
खुद दबग्या कर्जे नीच्चे
कुछ खाग्या दुकानदार
पैसे मेरे धोरै नहीं
ना देवे कदे उधार
हाथ पकड़ कै दुकान तै
काढे इस धोरे मारे धक्के चार
ना रहन घर, ना झोपड़ी
पता नहीं किसान क्यू बनाई इसी खोपड़ी
खूब कमाया था मैं
गेल्या करी थी लुगाई
बालक मेरे बिमार रहवै
ना समय पर आवै दवाई
पढ़ान का चा था मेरा
पर फीस न चढ़ाई करढ़ाई
किमे मारा गरीबी नै
किमे मार दिया महंगाई नै
कदे घाम में
कदे जाडे में
जला अर ठरा
तेरी फेर भी नहीं
सुनवाई
सारे कट्ठे हो नर नारी
किसानां की करो
अगुवाई
’’’’’’

मेरा समाज
मेरे समाज में
व्यक्तियों की
कमी
पर
इस जहान
में जीणा
बहुत मुश्किल
क्यों के
मेरा समाज
ना शिक्षा
ना स्वास्थ्य
ना ही खेल
हर क्षेत्र
में पिछड़ा
पड़ा है
क्यूं मैं
अल्पसंख्यक
मेरी गिनती
ना के
बराबर
मैं सोचूं
पूरा प्रचार
प्रसार करू
अपने समाज
ने उपर ठाण
मैं क्योंकि
हमने सबनै
एक होना
पड़ेगा
तभी हमारा
समाज
उद्धार कर सकेगा
ओर
आसमान को
छु सकेगा, उसका भी मन
इस जहान में, घूमने का होगा
तभी मेरा, समाज
तरक्की कर
सकेगा।
’’’’’’

मुस्कान
कवि ने चाहिए सै दो चीज,
तालियां अर हांसना सै इसकी मीत।
गम न भुला अर मुस्कान जगा।
क्रोध, द्वेष, दुश्मनी न भजा।
कवि नचाते, कवि हंसाते, कवि बिखैर प्यार,
आज कल का जमाना इसां भाईचारा छोडन नै होरै त्यार।
मरण कटन तै ना कोए डरदा
अपने बोल्या तै वो खुद घिरता।
अपने मन हमेशा राख्यो मुस्कान।
श्रोता का ताली अर वाह सै कवि की जान।
खान मनजीत भावडिया मजीद भी देखे सै मीत,
ना पुराना खानपान रहा ना रही सै रीत।

Language: Hindi
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