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12 Feb 2020 · 1 min read

सच गूंगा नहीं

हवस नहीं है मुझे दौलत कमाने की
इक जरूरत है ये घर को चलाने की

मैं जीता, तो उसने भी मुबारक कहा
लगा था कोशिश में जो मुझे हराने की

चाहता था वह भी मुझको मेरी तरह
हिम्मत नहीं थी बस इतना बताने की

बस एक भड़कता बयान ही काफी है
ज़रूरत नहीं तुमको आग लगाने की

वह गूंगा नहीं था, जो खामोश रहता
कोशिशें लाख हुईं सच को दबाने की

हक लिखेंगे हम, हक ही बोलेंगे हम!
अपनी आदत नहीं कसीदे सुनाने की

उठा ना पाया वह ज़माने को सर पे
उसकी तो आदत है ऊधम मचाने की

होता है यूं कमजोरियों में इज़ाफ़ा
छोड़िए आदत ये आंसू बहाने की

4 Likes · 5 Comments · 348 Views
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