सच को कभी तुम छुपा नहीं सकते
रूप बदलकर तुम यूं अपना, सच को कभी तुम छुपा नहीं सकते।
चाहे बदल लो कितने ही चेहरे, हकीकत कभी तुम बदल नहीं सकते।।
रूप बदलकर तुम यूं अपना——————-।।
यह तुमने जो कमाई है दौलत, पाई है यहाँ जो शौहरत।
कितनों का तुमने दिल दुःखाकर, पूरी की है अपनी हसरत।।
खुद को तुम सजा लो कितना ही, खुदा कभी तुम बन नहीं सकते।
कर लो चाहे तुम कितने भी पहरे, सच से कभी तुम बच नहीं सकते।।
रूप बदलकर तुम यूं अपना—————-।।
करते हो सौदा मोहब्बत में तुम, जज्बाते- दिल और इज्जत का।
क्या समझोगे इन्सानों को, इमानो- कर्म इंसानियत का।।
सच तो सच है वह यूं ऐसे, पर्दे में कभी छुप नहीं सकता।
चाहे लगा लो खुद पे नकाब, दाग कभी तुम मिटा नहीं सकते।।
रूप बदलकर तुम यूं अपना—————–।।
आखिर क्यों खुश है तू इतना, क्या नेक किया है यहाँ तुमने।
नफरत के तुमने जलाकर दीये, घर यहाँ जलाये कितने तुमने।।
सोचो नहीं कभी ऐसा तुम, कोई तुमको नहीं देख रहा।
चाहे कर लो पापों पे पर्दा तुम, निर्दोष कभी तुम हो नहीं सकते।।
रूप बदलकर तुम यूं अपना——————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)