सच की मौत
कहते हैं झूठ के पांव नहीं होते,
फिर भी वह जड़ें जमाने की कोशिश करता है।
बार – बार पकड़े जाने पर भी,
सच पर एक नया इल्जाम लगा कर,
हाथों से फिसल जाता है।
सच बेचारा तोहमतों में घिरा,
अपने आप को साबित करने में लगा रहता है।
कभी गीता कभी कुरान तो कभी,
रिश्तों की कसमें खाता है।
झूठ कहीं दूर खड़ा इस तमाशे को देख,
अपने पर इतराता है।
और सच की बेबसी पर हंसता है।
सच भी खामोश हो दफ़न हो जाता है।
झूठ की चकाचौंध भरी दुनिया में,
वह एक लावारिस है।
जो कुत्ते की मौत मरने के लिए,
दुनिया में आता है।