#कुंडलिया//आत्मा
कहती भिन्न ज़ुबान है , फिरे हृदय चहुँ ओर।
मुख दर्पण है सच कहे , छिपे न मन का चोर।।
छिपे न मन का चोर , करे ग़लती पछताए।
बीत गया जो वक़्त , कहो कैसे फिर आए?
सुन प्रीतम की बात , झूठ सदा ही अखरती।
बोलो सच्चे बोल , यही आत्मा बस कहती।
#आर.एस.प्रीतम