सच्चा सपूत
तैयारियाँ जोर शोर से चल रही थीं। हों भी क्यूँ न।
15 दिनों बाद रमन का विवाह जो था। मिसेज़ माया चौधरी अपने स्व.पति लेफ्टिनेंट राम चौधरी के अरमान पूरे करना चाहती थीं जो उन्होंने जीते जी पुत्र को लेकर देखे थे। संयोग से डेढ़ माह पहले ही पड़ोसी देश से युद्ध छिड़ने के कारण लेफ्टिनेंट रमन को बार्डर पर जाना पड़ा।
ले. राम के युद्ध के दौरान शहीद हो जाने के पश्चात् माया जी ने जब अपने इकलौते बेटे को आर्मी में भेजने का तथा बेटे ने भी स्वयं आर्मी में जाने का निर्णय लिया तो सारे परिवार व परिचितों ने दबे स्वर में इसका विरोध इस कारण भी किया कि बेटे के अतिरिक्त माया जी का और कोई सहारा न था।
माया जी अपने निर्णय पर अडिग रहीं और बेटे के सम्मुख हमेशा की तरह कहती आ रहीं बात को दोहराया – “बेटा जैसे मैं तेरी माँ हूँ उसी प्रकार यह भारत माता भी तेरी माँ है।”
“एक सपूत को अपनी माँ के प्रति सदा वफादार रहने का फर्ज निभाना चाहिए।”
“अपने स्वर्गीय पापा की तरह तू भी यही करना बेटा।”
रमन देश भक्त और मातृभक्त नव युवक था।
“अरे हरि काका! रमन का वो सगाई वाला नीला सूट नहीं आया।” माया जी बोलीं
“जी मालकिन। अभी ले आऊंगा।”
इसी बीच कमला बाई माया जी का मोबाइल उठा कर लाई बेड रूम से।
“यह हाथ में रहता है तो काम में डिस्टर्ब होती हूँ। उधर ही रख।”
“मांजी फोन है आपके लिए”
“हैलो! जी क्या। ”
माया जी के हाथ से फोन छूट गया।
रमन की शहादत को आज तीसरा दिन है। माया जी हाथ जोड़ कर सभी आगंतुकों से कह उठीं – “उसने अपना वादा निभाया। अपनी माँ से बेवफाई नहीं की।”
” भारत माँ का सच्चा सपूत था वह।”
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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