-सच्चाई
पृथ्वी सहती सब का भार,
गगन ढक लेता सारा संसार,
पर्वत उठाता शीश बढ़ाकर,
सागर लहराता कल-कल कर,
प्रकृति के यह सुंदर उपहार,
देते हैं हमको सीख अपार,
मत ठग मानुष अपने आप को,
झूठे जंजालों से……
मत उलझा अपने सपनों को,
ग़लतफहमी के जालों से,
मत खो अपने आप को,
इधर -उधर की बातों से,
खोकर सब फिर पछताएगा,
गया समय लौट कर नहीं आएगा,
जो अब कर सकते हो,वो
बाद में नहीं कर पाएगा,
विश्वास कर अपने आप पर…
दुनिया को मुठ्ठी में कर,
खुशियों से अपनी ‘सीमा’झोली भर।
– सीमा गुप्ता