सच्चाई की कीमत
सच बोलने की कीमत कई बार,
चुकानी पड़ती जान देकर,
सच की बेड़ियां आखिर कतर दी हैं,
सत्ता के गलियारों ने,
सफेदपोश द्वारा बड़े- बड़े सम्मेलनों में,
गला घोंट दिया जाता है,
खानाबदोशियत इलम से,
हत्या कर दी जाती अहिंसा नामक ऊसूल-ए -जिंदगी की।
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शर्मिंदगी महसूस करनी पड़ती है,
सत्य,अहिंसा, ईमानदारी, कर्मठता और,
सदाचार जैसी जिंदगी की मूल मान्यताओं को।
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सच को अक्सर जमींदोज कर दिया जाता है,
धोखे की कचहरी और फ़रेब की काल कोठरी में,
अंधेरे में सच को दफना दिए जाता है,
सच्चाई के राज़, और सौगात में बच जाती सिर्फ,
गुंडागर्दी की बादशाहत।
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दुनिया भूल जाती है यदा-कदा के सच को,
जमीं में गाड़ दिए जाते हैं आदर्श,
अहसान फरामोश बन जाता समाज,
गला रेत दिया जाता है सच बोलने वालों का,
दुनिया से मिटा दिए जाते हैं,
सच बोलने वालों के सबूत।
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रह जाती है तो बस,
जुल्मों की अंधेरी बरसाती रात,
जिसमें घूमते हैं निशाचर,
रेनकोट पहनकर हाथों में खंजर लिए,
नोच डालते है सच बोलने वालों का सच।
तोड़ डालते हैं हड्डी उनकी,
जो बोलते हैं सच,
और खौफनाक मंजर से चुकाई जाती,
सच्चाई की कीमत।
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डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।