सखी तू…
मैं डूबती हुई चींटी सी
तू जान बचाता तिनका है
मैं जाप का जैसे धागा हूँ
तू उसका सूंदर मनका है,
मैं दिल में बैठी बात कोई
तू उस बात पे भीगी पलक सी है
मैं रात घनेरी काली काली
तू चाँद की उसमे झलक सी है
मैं हार के बैठी नीरस जान
तू जान फूंकती जीत सी है
मैं मूक-बधिर सी मूरत हूँ
तू सुर का पक्का गीत सी है
मैं देह त्यागती सांसों सी
तू संजीवनी बूटी है
तू ही सखी है पक्की सच्ची
बाकी दुनिया झूठी है….
ये सारी दुनिया झूठी है……
स्वरचित
इंदु रिंकी वर्मा