सखी- अधूरा प्रेम।
सच है कि दिखने में सखी,
प्रेम ये अपना अधूरा लगे,
पर देखो तुम्हारी एक मुस्कान से सखी,
संसार ये मेरा पूरा लगे,
संवाद से सजा ये संबंध है सखी,
जो अधूरा होकर भी पूरा लगे,
तुम हो मेरे हर शब्द में सखी,
फिर क्या आधा क्या अधूरा लगे,
मुलाकात नहीं पर बात है सखी,
फिर कहो कहां कुछ अधूरा लगे,
तुम और मैं से “हम” है सखी,
फिर कैसे बाकी कुछ अधूरा लगे,
कितना सुंदर ये वर्णन है सखी,
जो अधूरा ही सही पर पूरा लगे।
कवि- अम्बर श्रीवास्तव।