सखा मेरा , मुझको प्यारा
जिसको कहता मैं मित्र ।
दिल मे रखता उसका चित्र ।।
वो मेरा होता है अभिन्न ।
कैसे फिर मैं हो जाऊँ भिन्न ।।
अगर वो दुःख से पीड़ित ।
कैसे फिर मैं हो जाऊँ सीमित ।।
सखा मेरा, मुझको प्यारा ।
जग से लगता फिर वो न्यारा ।।
हम हर पल साथ रहते ।
दिल की बात सदा सुनाते ।।
एक दूजे पर विश्वास अटूट ।
सपने में भी नही जाता टूट ।।