सकारात्मकता का बोध!
आज कल चर्चा में है,
सकारात्मक रहना, और
नकारात्मकता से दूर रहना,
बतलाया जा रहा है।
तो बताए देते हैं ,
हम तो सकारात्मक ही रहे हैं,
रहते हैं,
और रहने को अभिषप्त हैं।
विपरित परिस्थितियों में भी,
जुझते ही रहते हैं,
हासिल करने को अपनी जरुरत की वस्तु,
जिसके लिए हम निकले हैं,
पाकर ही लौटाने का निश्चय कर,
दृढ़ संकल्प लिए हुए,
इसको हासिल करने के लिए।
हम जुट जाते हैं
उसे पाने को शिद्दत के साथ,
करते हैं कड़ी मेहनत,
और मजूरी हाड तोड़,
या फिर करते हैं मनुहार-गुहार,,
परिस्थिति अनुसार,
या तो मान अपमान को,
खूंटी पर टांग कर,
दण्ड वत भी हो लेते हैं।
किसी विधि भी हासिल हो,
वह साधन,
जो पूर्ति करता है,
हमारी जरूरत,
उसे पाने को,
कई बार ठुकराए जाने के बाद भी,
टिके रहते हैं,
उसे पाने को,
और यदि हासिल नहीं हो पाए,
तो भी,,
पुनः पुनः करते हैं,
वही प्रयास,
लिए हुए यह आस,
निकल पड़ते हैं,
सकारात्मक होकर,
अनेकों बाधाओं के बावजूद,
हुजूर,
हम तो सदैव,
सकारात्मक दृष्टिकोण, को लेकर,
रहने को हैं मजबूर।