सकल को चिंता, होवे कल की l
सकल को चिंता, होवे कल की l
सकल छबि जंगल की, दंगल की ll
गर कल, अस्तित्व ना मन में l
तब चिंता, सहजो सरल की ll
एक अंत, सदा दिखे, देख l
आस पास नदियाँ, गरल की ll
चिंता रहे, चिंता ढोना l
सकल अंजान, प्यास बल की ll
अरविन्द व्यास “प्यास”
व्योमत्न