Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 May 2024 · 3 min read

#संस्मरण

#संस्मरण
■ एक काली रात की उजली सौगात
★ अदबी सफ़र के 37 साल
★ आज मेरी शायरी की 37वीं सालगिरह
(अदब के सफ़र में आपके साथ और सहयोग को सलाम)
【प्रणय प्रभात】
आज 07 मई 2024 का दिन मेरे लिए बेहद ख़ास है। जी हाँ, आज मेरी शायरी की 37वीं सालगिरह है। वर्ष 1987 में आज ही के दिन इस दिल की ज़मीन पर उर्दू अदब का पहला बीज अंकुरित हुआ था। आज ही के दिन श्योपुर मेले के रंगमंच पर पहली बार अखिल भारतीय मुशायरा पहली बार सुना था। इस दिन तक उर्दू को लेकर न कोई रुचि थी न समझ। बस एक रात काटने की मंशा से जा बैठे थे मुशायरे में। वो भी इसलिए कि मोहल्ले में बिजली नहीं थी उस रात।
शुरुआत में न कुछ पल्ले पड़ना था न पड़ा। इसके बाद जैसे ही नाज़िमें-मुशायरा डॉ बशीर बद्र साहब अपने रंग में आए, उर्दू
ज़ुबान अपनी सी लगने लगी। लगा कि इससे जो डर था उसकी कोई वजह ही नहीं थी। ख़ानदान में बाबा, पापा दोनों उर्दू के अच्छे जानकार थे। इस नाते भी उर्दू ख़ून में थी। बस उससे रूबरू होने का मौका इससे पहले नहीं मिला था मुझे। अलसुबह तक चले मुशायरे में पद्मश्री डॉ बशीर बद्र के अलावा अदब की दुनिया के नामी शायर डॉ राहत इंदौरी, डॉ सागर आज़मी, अख़्तर ग्वालियरी, इम्तियाज़ जयपुरो, राही शहाबी, एजाज़ पापुलर मेरठी, मोहतरमा तस्नीम सिद्दीक़ी और शांति सबा मंच पर थीं।
आधे से ज़्यादा क़लाम आसानी से समझ आया। बाक़ी साथ ले गए अज़ीज़ दोस्त और वरिष्ठ शायर शाकिर अली “शाकिर” की मदद से समझा। उर्दू का जादू अब हिंदी रचनाकार के सर पर चढ़ कर बोल रहा था। मौसी भी माँ सी ख़ूबसूरत और मीठी हो सकती है, उस एक रात के चंद घण्टों में जाना। प्रोग्राम ख़त्म होने के बाद डायरी ले कर मंच पर चढ़ा। डॉ बद्र से ऑटोग्राफ़ मांगा। वो बड़े ख़ुलूस से मिले। मुस्कुराए और खुले हुए पन्ने पर अपने दस्तख़त के साथ लिखा यह शेर-
“कुछ तो मजबूरियां रही होंगी।
यूं कोई बेवफ़ा नहीं होता।।”
अगले ही दिन जनाब शाकिर साहब से ग़ज़ल, नज़्म, क़तात, शेर के बारे में समझने का प्रयास किया। एक ग़ज़ल की बंदिश, रदीफ़, क़ाफ़िए के बारे में जाना। शाम होने तक बहुत कुछ लिख भी दिया। बतौर उस्ताद शाकिर साहब ने इस्लाह की। अदब के सफ़र का आगाज़ हो चुका था। जो आज तक बदस्तूर जारी है। जीवन के इस दो तिहाई हिस्से ने तमाम तजुर्बे दिए। नतीज़तन आज उर्दू अदब की ज़्यादातर विधाओं से मेरा सीधा वास्ता है। लग्भग हर सिंफ़ में लिखा है। लिख रहा हूँ आज तक। क़लाम कभी सैकड़ों में था, अब हज़ारों में है। दुआएं हैं आप की, इनायतें और नवाज़िशें भी। आगे भी हमवार बने रहेंगे तो सफ़र दिलचस्प बना रहेगा।
तीन दशक से अधिक की इस आदबी यात्रा में दौलत, शौहरत जैसी आरज़ी मंज़िल बेशक़ दूर रही हो, मगर दिली सुक़ून की भरपूर दौलत से मालामाल रहा हूँ मैं।
आप जैसे अच्छे दोस्त हमक़दम रहे हैं हमेशा से।
शुक्रगुज़ार हूँ आपकी बेपनाह दुआओं, इनायतों, नावाज़िशों और मुहब्बतों के लिए। बाक़ी के दोस्तों से गुज़ारिश है कि उर्दू से परहेज़ नहीं प्यार करें। थोड़ी सी कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि ये आपकी अपनी ज़ुबान है। जो आपकी तहज़ीब को कुछ और निखार देती है। शुक्रिया इस शीरीं जुबान का।
चलते-चलते बताता चलूं कि तमाम मंचीय कार्यक्रमों से जुड़ाव के बावजूद शायरी मेरी रोज़ी-रोटी नहीं रही। मैने गीतों को बेटों की तरह पाला तो ग़ज़लों और नज़्मों को बेटियों की तरह। यह मेरे लिए जरिया बनी दिल-दिमाग़ से बोझ उतारने का। मन को हल्का करने का भी। ठहराव और रफ़्तार से लेकर उबाल तक से लबरेज़ है मेरी शायरी। तभी शायद कभी कहना पड़ा मुझे-
“मुझे सोते हुए जगते हुए ये ख़्वाब आता है,
कभी पानी की जगहा आंख में तेज़ाब आता है।
मैं बेहतर जानता हूँ इसलिए अक़्सर उफनता हूँ,
समंदर मौन रहता है तो फिर सैलाब आता है।।”
■प्रणय प्रभात■
संपादक/न्यूज़&व्यूज
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
😊😊😊😊😊😊😊😊😊

1 Like · 78 Views

You may also like these posts

दोहा पंचक. . . . चिट्ठी
दोहा पंचक. . . . चिट्ठी
sushil sarna
आवड़ थूं ही अंबिका, बायण थूं हिगलाज।
आवड़ थूं ही अंबिका, बायण थूं हिगलाज।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
जिंदगी में अपने मैं होकर चिंतामुक्त मौज करता हूं।
जिंदगी में अपने मैं होकर चिंतामुक्त मौज करता हूं।
Rj Anand Prajapati
बड़े मासूम सवाल होते हैं तेरे
बड़े मासूम सवाल होते हैं तेरे
©️ दामिनी नारायण सिंह
कविता
कविता
Nmita Sharma
गौरैया
गौरैया
सोनू हंस
मां कालरात्रि
मां कालरात्रि
Mukesh Kumar Sonkar
मेरी आंखों के काजल को तुमसे ये शिकायत रहती है,
मेरी आंखों के काजल को तुमसे ये शिकायत रहती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
नास्तिकों और पाखंडियों के बीच का प्रहसन तो ठीक है,
नास्तिकों और पाखंडियों के बीच का प्रहसन तो ठीक है,
शेखर सिंह
मेरे हमदर्द मेरे हमराह, बने हो जब से तुम मेरे
मेरे हमदर्द मेरे हमराह, बने हो जब से तुम मेरे
gurudeenverma198
🙅लोकतंत्र में🙅
🙅लोकतंत्र में🙅
*प्रणय*
दूजा नहीं रहता
दूजा नहीं रहता
अरशद रसूल बदायूंनी
नशा नये साल का
नशा नये साल का
Ahtesham Ahmad
कविता ही तो परंम सत्य से, रूबरू हमें कराती है
कविता ही तो परंम सत्य से, रूबरू हमें कराती है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
छलने लगे हैं लोग
छलने लगे हैं लोग
आकाश महेशपुरी
"ख़ामोशी"
Pushpraj Anant
2537.पूर्णिका
2537.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
फ़ासला गर
फ़ासला गर
Dr fauzia Naseem shad
सच तो हमेशा शांत रहता है
सच तो हमेशा शांत रहता है
Nitin Kulkarni
गर तू गैरों का मुंह ताकेगा।
गर तू गैरों का मुंह ताकेगा।
Kumar Kalhans
सुंदर विचार
सुंदर विचार
Jogendar singh
- हम कोशिश करेंगे -
- हम कोशिश करेंगे -
bharat gehlot
फिर वही
फिर वही
हिमांशु Kulshrestha
किस्मत से
किस्मत से
Chitra Bisht
"स्वतंत्रता के नाम पर कम कपड़ों में कैमरे में आ रही हैं ll
पूर्वार्थ
राजतंत्र क ठगबंधन!
राजतंत्र क ठगबंधन!
Bodhisatva kastooriya
चांद कहानी
चांद कहानी
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
एक उजली सी सांझ वो ढलती हुई
एक उजली सी सांझ वो ढलती हुई
नूरफातिमा खातून नूरी
बेहतर कल
बेहतर कल
Girija Arora
*जानो कीमत वोट की, करो सभी मतदान (कुंडलिया)*
*जानो कीमत वोट की, करो सभी मतदान (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
Loading...