*संस्मरण*
संस्मरण
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साठ के दशक में नाई की दुकान का स्वरूप
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हमारे घर से निकलकर गली के बाहर दरवाजे पर खड़ा होकर सामने ही बॉंई ओर नाई की दुकान थी। सर्राफा बाजार में आजकल जहॉं विजय मार्केट है, उस जगह नाई की दुकान हुआ करती थी।
साधारण-सी दुकान थी। प्लास्टर भी ऊबड-खाबड़ ही कहा जा सकता है। लेकिन पुताई ठीक-ठाक हुआ करती थी। लकड़ी के साधारण दरवाजे जैसे उस समय होते थे, वह थे।
ग्राहकों के प्रतीक्षा करने के लिए लकड़ी की साधारण बेंच पड़ी थी।
बाल काटने के लिए लकड़ी की एक कुर्सी हुआ करती थी। जिसे अत्यंत साधारण ही कहा जाएगा। हमारी उम्र उस समय कम थी, अतः कुर्सी के हत्थों पर पटला रखकर हमें बैठाया जाता था और तब बाल काटे जाते थे। बाल काटने वाली कुर्सी के सामने लकड़ी की एक कानस हुआ करती थी। उस पर एक बड़ा सा शीशा इस तरह रखा रहता था कि बाल कटवाने वाले को अपना चेहरा शीशे में दिखता रहे।
नाई का नाम संभवत सलीम था। सलीम भाई जैसा हमने पहले दिन देखा, वैसे ही लगातार दिखते रहे। दुबले-पतले, फुर्तीले, सिर पर छोटे-छोटे बाल रखते थे। रंग थोड़ा साफ था। फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार के प्रशंसक थे। दिलीप कुमार का एक बड़ा-सा फोटो फ्रेम में मढ़ा हुआ उनकी दुकान में दीवार पर लगा रहता था।
अखबार नहीं आते थे। एक या दो फिल्मी पत्रिकाएं बैंच पर पड़ी रहती थीं । वह नई होती थीं अथवा पुरानी, इसका हमें अनुमान नहीं है।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451