संस्कृत के आँचल की बेटी
संस्कृत के आँचल की बेटी
आर्यावर्त की हैं यह चोटी
उर्दू इसकी बहन ममेरी
इंग्लिश बन बैठी हैं बैरी
इससे मेरी प्रीत घनेरी
ज्योति ज्ञान आशा हैं मेरी
हिंदी मातृ, भाषा हैं मेरी
भारतेंदु हरि, गुरुत्वा दे बैठे
ज्ञान की देवी, कभी न रूठे
सुर, रहीम, तुलसी विद्यवाना
हिंदी के हुए, ज्ञानी नाना
अर्णव के समक्ष उपस्थित, हिंदी की परिभाषा मेरी
सांकृत्यायन रचे “ अथातो घुमक्कड़ “ जिज्ञासा फेरी
हिंदी मातृ, भाषा हैं मेरी
गबन गोदान कर्म भूमि, मुंशी प्रेम की हिंदी रचना
सागर में मोती के जैसे, स्वर्ण जड़ित हैं हिंदी अपना
द्विवेदी, देवी वर्मा ने, हिंदी साहित्य को मोड़ दिया हैं
रस छंद अलंकार सोरठा, उन्मुक्त कड़ी जोड़ दिया हैं
श्याम नारायण की वीर सुसज्जित कविता घनेरी
साहित्य सेवा अभिलाषा हैं मेरी
हिंदी मातृ, भाषा हैं मेरी
इंजी. नवनीत पाण्डेय सेवटा (चंकी)