संस्कृति / मुसाफ़िर बैठा
संस्कृति
बहुस्रोतों से निकसित और प्लावित
वह निर्दोष निरीह अथवा सदोष पक्षपाती निराकार पानी है
जो सत्ता संगी धर्म–बर्तन से
अपने आकार–प्रकार को
पाने को विवश है!
इसे आप
लोककथा का हाथी भी कहिए
जिसे हर अंधा
अपनी अपनी छुअन के आधार के
अलग आकार में पाता है
मगर
उसे संपूर्णता में छू
सही आकार को पाना
हर अंधे के लिए
असंभव होता है!
यह भी कि
संस्कृति
आंख वालों की न तो जरूरत है
न ही ईजाद!