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8 Jul 2021 · 1 min read

संस्कृतम्

संस्कृतम्
*********

संस्कार की जननी “संस्कृत”,
भाषाओं में पावनी “संस्कृत”।

भाषा यह, भावों से अलंकृत;
युगों-युगों से है, ये पुरस्कृत।

संस्कृत है, हर भाषा का आधार;
इसकी वाणी से गूंजे, पूरा संसार।

इसके हर पंक्ति हैं, छंद से ‘सीले’;
हर शब्द इसके, रस से हैं ‘गीले’।

सुंदर मन को, ये भाषा ही भाये;
सब सुर-ताल संस्कृत से ही आए।

संस्कृत तो, देवों की भी भाषा है;
हर भाषा की, ये ही तो आशा है।

यही भाषा है, हर ज्ञान का स्रोत;
ये है, देशी भावना से ओत- प्रोत।

आज गणित हो, या हो व्याकरण;
सब चाहे , संस्कृत की ही शरण।

कंप्यूटर हो , या हो कोई विज्ञानी;
बिन संस्कृत के, सब ही अज्ञानी।

‘दानव’ सब डरे, संस्कृत बोली से;
इससे भागे वो, जैसे कोई गोली से।

अगर न होती, ये भाषा विमल तरंगे;
हर जन होते आज, बहरे और गूंगे।

छोड़, ईर्ष्या-द्वेष, इसे अपनाए हम;
जयतु संस्कृतम्, जयतु भारतम्।।

######################

..✍️ पंकज “कर्ण”
……..कटिहार।।

Language: Hindi
8 Likes · 10 Comments · 1166 Views
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