संस्कार संस्कृति सभ्यता
आज लगता है ऐसा,पृथ्वी
संस्कार संस्कृति से खाली है
चींटी के झुण्डों ने मानो
पर्वत को हिला डाली है
जिस आंगन पर होता नही
माता पिता का सम्मान
मनमौजी रहते बेटा बहू
करता सदा अपमान
उस आंगन पर सर्प
बसेरा कर डाली है
चींटी के झुण्डो ने मानों
पर्वत को हिला डाली है
माता-पिता तो है बुढ़े
पर अनुभव के सागर हैं
देख लिया है सारी दुनिया
समुद्र है कि गागर है
सृष्टि जगत के फुलवारी पर
वह सुंदर माली है
लगता है मानो, आज पृथ्वी
संस्कार सभ्यता से खाली है
डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग