संस्कार जगाएँ
चलो एकबार फिर से
बच्चों मे संस्कार जगाएँ।
मजहब धर्म से ऊपर उठकर
फिर से रिश्तों को सजाएँ।।
हो गए है जो दूर हमसे
उन्हें करीब फिर हम लाएँ।
कर एक दूजे से प्यार हम
दिलों से नफरत को मिटाए।
बच्चों को फिर से अपने
पुराने संस्कार से अवगत कराएँ।
है रिश्तो में छिपा हुआ
हमारे देश का संस्कार।
यह बात अपने बच्चों को
हम गर्व से बताएँ।।
सिखाकर उन्हे बड़ो का सम्मान करना
हम उनके अन्दर उत्तम संस्कार जगाएँ।
है बड़े हमारे लिए भगवान
हम बच्चो को बतलाएँ।
हम अपने धर्म ग्रंथो को
अपने बच्चो को पढ़ाएँ।
हमारे धर्म और मजहब क्या सिखाते है
आओ उन्हें हम मिलकर समाझाएँ।
ताकि कोई उनको धर्म और मजहब
के नाम पर भटका नही पाएँ।
आओ सिखाएँ बच्चो को हम
सही गलत का विश्लेषण करना।
ताकि वे भूलकर भी कभी
गलत राहों पर न जाएँ।
हम अपने बच्चों के रग -रग में
देश भक्ति को बैठाएँ।
देश से बढकर कुछ नही होता
उनको हम बचपन से समझाएँ।
देश और देश के हर चीजों से
हम उन्हें प्यार करना सिखलाएँ।
आओ फिर से एकबार हम
मिलकर बच्चो को समझाएँ।
उनके अन्दर उत्तम संस्कार भर
उनको अच्छा इंसान बनाएँ।
~अनामिका