संस्कार का गहना
अक्सर ब्याह दी जाती है बेटियां
धन की पोटली से, जायदाद के माप से
सुरक्षित सी एक नौकरी से
सात समंदर पार भी दिखता है
चकाचौंध करता नखलिस्तान
सुविधाओ के अंबार से झुका
एक आसमान
भविष्य को मुठ्ठी मे सहेजने की चाहत में
खुद को होम कर रहा हर जवान
नेपथ्य मे चला जाता है
संस्कार का पहना गहना
स्नेह की उचित मात्रा
जिम्मेदारी उठाने का जज्बा
सामाजिक कर्तव्य निभाने का भाव
वातावरण व पर्यावरण के प्रति संवेदना
स्वहित का बढ़ता जाता है बोलबाला
परहित को जैसे भुला ही डाला
रिश्तो की उम्र हो रही छोटी
सिमटना खुद मे बन रही मजबूरी
मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना होगा
पौध को संस्कार के जल से नहाना होगा
प्रसन्न और स्वस्थ्य समाज का
तब होगा निर्माण
जाति , धर्म, देश से परे होगा जब
इंसान का इस धरती पर वास
संदीप पांडे”शिष्य” अजमेर