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21 Apr 2024 · 1 min read

संवेदना -जीवन का क्रम

जीवन का क्रम आना जाना
तू पल पल छिन छिन जी ले

उम्मीदों की लौ बुझ रही
आस का दीपक सा बर ले
इंसानियत की ज्योत जला
जगती के हर तम को हर ले

जीवन का क्रम आना जाना
तू पल पल छिन छिन जी ले

बहुत जी लिया स्वयं स्वयं में
जन जन के लिए भी सह ले
करमों का फल यहीं मिलेगा
करुणा के सागर सा बह ले

जीवन का क्रम आना जाना
तू पल पल छिन छिन जी ले

उधड़ रही भलाई की तुरपाई
संवेदनाओं के धागे से सी ले
संसृति लोभ हलाहल डूब रही
कर मंथन शिव सा विष पी ले

जीवन का क्रम आना जाना
तू पल पल छिन छिन जी ले

रेखांकन I रेखा ड्रोलिया
कोलकाता
स्वरचित

4 Likes · 41 Views
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