संवाद:दिन और रात
दिन ने रात से कहा
अरी ओ काली कलूटी
बैंगन लूटी।
कैसे जी लेती हो तुम
इतने सन्नाटे में!
न कोई शोरगुल,न हलचल
न धींगा मस्ती, न महफ़िल।
मुस्कुराते हुए रात बोली
अरी ओ गोरी गोरी
बांकी छोरी।
इतने गुरूर में न रहो हरदम।
जिन लोगों को तू दौड़ा दौड़ा
बदहवास कर डालती है।
मैं उन्हें अपने आगोश में ले लेती हूं।
उन्हें चैन,सुकून ,भरपूर नींद देती हूं।
अरे मैडम चम चम!
मेरे बिना अपने अस्तित्व की
तू कल्पना भी न कर पाएगी।
मैं गर तुझे सहारा न दूँ,
तू जल्दी ही मर जाएगी।
**** धीरजा शर्मा***