संयुक्त कुटुंब पद्धती-दुख का दरिया (वाद विवाद प्रतियोगिता)
नाम –कांचन आलोक मालू
ज़िला–लातूर
परिवर्तन ही सृष्टि का सबसे बड़ा नियम है। वक्त के साथ शिक्षन, राजनीति, कुटुंब और इंसान की जिंदगी जीने का तरीके मे भी बदलाव यह एक आम बात है।
संयुक्त कुटुंब पद्धती एक ऐसा संगठन है जो परिवार के सदस्यों को एक साथ बांधता है। पर एक दृष्टिकोण ऐसा भी है इस संगठन से दुख संघर्ष और विवाद की उत्पत्ति होती है। सदियों से चलती आ रही यह समूह की रचना बदलने की हमें सख्त जरूरत है कारण एक नहीं अनेक है,
आजकल हर परिवार में सारे सदस्य सु शिक्षित है उन्हें अपने विचारों की एवं जिंदगी के हर निर्णय लेने की स्वतंत्रता और अधिकार है, जबकि संयुक्त पद्धति के वजह से मूल्यों को लेकर टकराव की संभावनाएं अधिक होती है जिंदगी के हर छोटे-मोटे निर्णय में घर के मुखिया के ”हां” आनी जरूरी होती है यह इस कारण की वजह से मनुष्य के सक्षमता पर आक्रमण होता है।
इसके विरुद्ध एकल परिवार में आजादी का एहसास होता है यह व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
बच्चों की शिक्षा और जिंदगी के सारे निर्णय में वे वे अपने माता-पिता के साथ स्पष्ट और अधिक स्वतंत्र चर्चा करते हैं यह उनके सामाजिक विकास में बहुत ज्यादा मायने रखता है।
यह स्थिति निर्माण होना संयुक्त कुटुंब पद्धती में असंभव है, जहां हर निर्णय में घर का हर एक सदस्य शामिल होना और सदस्यों के विचार एक जैसे होना जरूरी नहीं।
यह आमतौर पर देखा गया है संयुक्त परिवारों में प्रेम से अधिकतर झगड़ा और विचारों के मतभेद होते हैं जिसका असर खास तौर पर घर की महिलाएं और बच्चों पर होता है।
जैसे किसी एक व्यक्ति के स्वार्थभावना के कारण दूसरे व्यक्ति त्याग करता है, उसे हमेशा त्याग करना पड़ता है।
विशेष रूप से, कई महिलाएं ऐसी हैं जो दिनभर रसोई में ही रहती हैं, उन्हें अपने बच्चों के छोटे-बड़े निर्णय नहीं लेने दिए जाते। जो पारिवारिक रिश्तों को डर कर संभालते हैं, ऐसे व्यक्ति को परिवार से कोई सहायता नहीं मिलती, और वह अपना सब कुछ खो बैठता है।
और पैसा भाई-बंध के बजाय भाई-बंद बन जाता है,
अर्थात् एक दूसरे के यहाँ जाना-आना बंद हो जाता है। इससे तो अच्छा है, अलग रहें पैसों का व्यवहार न करें, परंतु सहायता की भावना और प्रेम बना रहें।
यह बहुत दुख का कारण है की संयुक्त कुटुंब पद्धती के वजह से इंसान आत्मनिर्भर नहीं बन पाता क्योंकि काम के बंटवारे के वजह से हर एक व्यक्ति को बस अपने-अपने काम की ही जानकारी होती है और वह बाकी कामों के जिज्ञासा से अधिकतर दूर रहना पसंद करते हैं।
यह वास्तव में मायने नहीं रखता की आप सयुक्त परिवार से हो या फिर एकल परिवार से, बल्कि मायने यह रखता है की आप अपने बड़ों का सम्मान करें अपने से छोटों के प्रति स्नेह रखे ।
अपने सामाजिक, आर्थिक और जिंदगी के हर निर्णय में सक्षम रहे।
अंत में यही पारिवारिक मूल्य है।