संमदर और मैं
देख रहा हूँ तुझको दूर तलक फैला हुआ हे तू
क्या इंसान की पहूंच से भी आगे हे तू?
सोच रहा हूँ कितना गहरा हे तू
क्या इंसान के मन से भी गहरा हे तू ?
मिजाज भी तेरा नमक सा है
पर इंसान से ज्यादा खारा नहीं तू।
रोद्र रूप तेरा जग तबाह कर दे पर
इंसान से ज्यादा क्रोधी नहीं तू
क्या तेरे भीतर, जाने जग सारा
इंसान के भीतर क्या जाने तू ?
तु लडता आंधी तुफानो से
अपनी मोजों से ,बहती लहरों से
हम लडते समाज से ,धर्म से
अपने कर्म से, अपने आप से ।
लेना तेरी आदत नहीं
छोडना हमारी आदत नहीं।
देख रहा हूँ तुझको दूर तलक फैला हुआ हे तू
क्या इंसान की पहूंच से भी आगे हे तू?
सोनु सुगंध