“संबंधों की भी उम्र होती है”
संबंधों की भी उम्र होती है।
जी लो जितना हो सके।
जाने कब घटते घटते
मृतप्राय हो जाते है।
लाभ हानि से सिंचित
जाने कब फलते फलते
निष्प्राण हो जाते हैं।
कृतज्ञ कृतघ्न से आरोपित
जाने कब सुलझते उलझते
निष्क्रिय हो जाते हैं।
क्योंकि संबंधों की भी उम्र होती है।
©® डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”