संबंधों का मेला है
विधाता की इस सृष्टि में
संबंधों का मेला है।
पर लोगों की इस भीड़ में
हर व्यक्ति अकेला है।
भौतिक सुख की चाह में
क्यों भाग रहा है प्राणी।
जितने सुख को तू भोगेगा
उतना ही बड़ा झमेला है।
इस मेले में घूम फिर कर
बना ले चाहे जितनी पहचान
सुख में सब साथ आ जाएंगे
विपत्ति में अकेला है।
विश्वास कर ले स्वयं पर
रिश्तो पर अभिमान ना कर
यह ना तुझे उभारेगा यह
दिखावटों का रेला है।
– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’