संप्रेषण
संप्रेषण
मेरे तुम्हारे मध्य मौन ही संप्रेषण है
ये मौन तेरे मेरे संबंध का दर्पण है
ऐसा नहीं के बीच हमारे वार्तालाप नहीं
लेकिन वार्तालाप में वो आलाप नहीं
शब्दों के अनमोल मोती हैं
वाक्यों के अनुच्छेद भी हैं
अल्पविराम भी हैं पूर्णविराम भी
विचारों में मतभेद भी हैं
सब कुछ तो है लेकिन अन्वेषण नहीं है
मेरे तुम्हारे मध्य मौन ही संप्रेषण है
ऐसा क्यों है कारण से मैं अबोध हूँ
मैं अपने आचरण के विरोध हूँ
अनुच्छेदों तक ही सीमित है सीमा
तेरे मेरे संप्रेषण की अधिकतम सीमा
सब कुछ तो है लेकिन प्रदर्शन नहीं है
मेरे तुम्हारे मध्य मौन ही संप्रेषण है
तनिक भी शंका नहीं है मुझे
ना खुद पे ना तुम पे
ना अपनी वैचारिकता
ना शब्दावली पे
यदा कदा होता है
बातों का काफिला नहीं होता है
ना मेरा दोष इसमें ना तुम्हारा ही दोष है
ये जो जीवन का जटिल शब्दकोश है
सम्बन्धों का एक अनवरत स्रोत है
निसंदेह तेरे मेरे संप्रेषण की कोई कथा नहीं
ये मेरा दुख नहीं ये मेरी व्यथा नहीं
बस एक ही प्रश्न मन में बारम्बार उठता है
क्यों तेरे मेरे बीच भावनाओं का संवेदन नहीं!
इस निष्कर्ष पर पहुंचकर मौन हो जाती हूँ मैं
अब और कुछ कहते नहीं बनता,क्या कहूँ मैं
तेरे मेरे मध्य मौन ही संप्रेषण है
ये मौन तेरे मेरे संबंध का दर्पण है
सोनल निर्मल नमिता