संत
झोली लेकर चला फकीर मांगे सबकी खैर
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर
ना काहू से बैर, कि सबकी सुनता जाए
काम वही करे जो उसके मन को भाए
ना ही चिंता ना ही दु:ख,दिखती सूरत भोली
रमता जोगी है वह, घूमें लेकर झोली ।
रमता जोगी बहता पानी,सच्ची बोली सच्ची वानी
ना कोई सुख ना कोई दु:ख,सांस है आनी-जानी
सांस है आनी-जानी,कि मृत्यु ही अटल है
बैर त्याग करो सब, प्रेमनिष्ठ हृदय अचल है
विलास युक्त जीवन, हर भोगी को जमता
त्यागनिष्ठ जीवन ही स्वीकारे जोगी रमता ।
स्वरचित
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
नारायणपुर प्रतापगढ़
उ. प्र .