संत हूँ मैं
संत हूँ मैं,
मेरी ना काया,
मोह माया मुझमें ना बकाया ।
धारण करता पट एक निर्मल,
हाथ कमंडल झोली खाली,
गाता रहता गुणगान जगत का,
ईश्वर के कल्याण गाथा।
रंग बहुत है वेशभूषा में,
मन का रंग श्वेत है पाया,
भगवाधारी या पीतम्बर,
इनके अंदर अद्भुत ज्ञानी।
संत साधु हो ,
या सूफ़ी संत हो,
गाते भजन सब करते आनंद है,
रहते लीन उस ब्रह्म के हृदय में।
धन्य हुआ जो पाया खुद को,
खोज लिए उसने है मुझको,
भय मुक्ति अब मन है मेरा,
संत का मैने डाला डेरा।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।