संत की महिमा
संतो की बात न कहिये,
संत की ना कोई काया है,
पूर्ण ज्ञान जो पा सका,
आनंद उसकी ही छाया है।
शांत मन प्रेम की वाणी,
भोजन भिक्षा में पाया है,
संत गुरु दिए ज्ञान बिना,
भव सागर ना तज पाया है।
संतो का रूप एक है,
कह गये संत अनेक है,
मन निर्मल विचार शुद्ध,
हृदय में बसता वो एक है।
संत रहे या ना रहे,
कह गये बात सिर्फ नेक है,
संत वाणी को ध्यान कर,
स्वयम् का रूप पहचान बस।
संत कृपा अब किजिये,
मुक्ति का मार्ग दीजिये,
बहुतेरे को सत्य वचन दे गये,
प्रसन्न मन से मुक्त हो गये।
रचनाकार –
✍🏼✍🏼
बुद्ध प्रकाश ,
मौदहा,
हमीरपुर ।