संतोष है खजाना
थोड़ा ही पढ़ो साजन , व्यवहार भी बनाना ।
छूटे न मैल तो फिर , बेकार है नहाना ।
आॅंखें खराब कर ली , घर में बने जनाना ।
पचपन के पार जाकर ,अब खुद को क्या सजाना ।।
अब पढ़ के क्या करोगे , चादर में ही समाना ।
कानून पढ़ के अब क्या , संतोष है खजाना ।।
है शायरी की धुन भी , नित ही नया तराना ।
हम धन की भूख छोड़ें , पर्याप्त है कमाना ।।
इस भाव पर एक पोएम याद आ गया ———
हैपी द मैन , हूज विज एण्ड केयर ,
सम पैटर्नल एकर्स बाउण्ड ,
काण्टेण्ट टू ब्रीद हिज नेटिव लैंड ,
इन हिज ओन ग्राउण्ड ।।
— कवि सर्वानन्द पाण्डेय , अविज्ञात ।