संतुलन
लघुकथा
संतुलन
ग्राम पंचायत की बैठक चल रही थी। इसमें सरकार द्वारा मनरेगा के मजदूरों का भुगतान सीधे उनके खाते में जमा करने के आदेश और उसके क्रियान्वयन एवं इसके पंच-सरपंच के कमीशन पर संभावित असर के संबंध में गंभीर चर्चा हो रही थी। बैठे गले से सरपंच जी बोल रहे थे- “अब तो हमारे लिए कोई गुंजाइश ही नहीं बची। सरपंची के लिए चुनाव में जो खर्चा किया था, वह भी निकलना मुश्किल है।”
एक अनुभवी, घाघ पंच बोला- “ऐसे में हमारा गुजारा कैसे होगा ? इसका कोई न कोई तोड़ निकालना ही पड़ेगा।”
चश्मा उतारते हुए सचिव महोदय बोले- “किसी को भी परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप सब अपने-अपने परिवार के सभी व्यस्क लोगों के नाम से बैंक में खाता खुलवा लीजिए। मजदूरी का पैसा सीधे उनके खाते में पहुंच जाएगा। और हां, सभी मजदूर अब प्रतिदिन दो घंटे ज्यादा काम करेंगे, ताकि संतुलन बना रहे और हिसाब बराबर रहे.”
अब सबके चेहरे पर संतुष्टि के भाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़