संतुलन-ए-धरा
हर चीज का इस भुवन में
होना चाहिए उचित साम्य
साम्यवस्था में रहने से ही
सब कुछ ठीक होगी यहां।
समभार के बिना ये हयात
कभी न हो पाएगी संभव
उचित मात्रा हर चीज की
होती है अपेक्षित जग में।
कोई भी वस्तु को जहाँ में
ज्यादती होने से खलक में
न हो पाएगी इस जग, सृष्टि,
खल्क, धरा पर जीवन संभव।
असंतुलनता चाहे किसी भी हो
किसी प्रेतात्मा में हो या कुछ में
खाद्यय में तीक्ष्ण की अधिकता
तो होता अपना खाद्यय स्तब्ध।
धरा पर अगर किसी प्राणी की
किसी सबब हो जाए असंतुलन
न बचेगी कोई प्राणीवान भव में
वहीं से अंत इब्तिदा इस युग की।
सतत बनाए रखे समरसता
हर चीज की पड़ती गरजता
संतुलन संतुलन संतुलन ही
इन धरा की होती आकर्षिता।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार