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7 Jun 2017 · 1 min read

संजीवनी (डॉ. विवेक कुमार)

बहुत कुछ खोने के बाद भी
खुश हूँ मैं
यह सोच कर कि मेरे पास कुछ खोने को था तो सही ।

अपनों और परायों से
अनगिनत ठोकरें और धोखे
खाने के बावजूद
खुश हूँ मैं
क्योंकि दूसरों के दु:ख से दु:खी और
सुख से हर्ष महसूस करने के लिए
एक संवेदनशील दिल है मेरे पास।

सत्य को असत्य से मिली
अनवरत पराजयों के बावजूद भी खुश हूँ मैं सत्य की अंततः शाश्वत जीत की
सोंधी-सोंधी सुगंध की कल्पना कर।

जीवन की तमाम अनिश्चिंतताओं और जटिलताओं के बावजूद खुश हूँ मैं
क्योंकि उनसे लड़ने के लिए
तुम्हारी प्रेरणा रूपी अमोघ शक्ति और जिजीविषा है मेरे पास।

जीवन के गूढ़ रहस्य और उसकी तमाम
विषम परिस्थितियों के बीच भी
खुश हूँ मैं
क्योंकि मेरी स्मृतियों के झरोखों से झाँकती तुम्हारी मुस्कुराहट की संजीवनी है मेरे पास।

तेली पाड़ा मार्ग, दुमका, झारखंड।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

Language: Hindi
468 Views
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