संघर्ष थकाता बहुत है ;
सुना है मैंने इस संघर्ष थकाता बहुत है,
मगर अंदर से बना देता है मजबूत,
ए संघर्ष इतना न थका देना मुझे,
कि एक दिन दोबारा उठने की हिम्मत ही न जुटा पाऊं,
और यदि मजबूत बनकर खड़ी हो जाऊं,
तो एहसास भुलाकर कहीं पत्थर न बन जाऊं।
पढा है विज्ञान में मैंने, कि जब किसी वस्तु को हद से ज्यादा खींचा जाता है तो वह अक्सर टूट जाती है ।
मगर पुनः वापस उस स्थिति में नहीं लौट पाती है।
फिर हो जाते हैं हमारे सारे प्रयास विफल,
चाह कर भी संबंधों में मधुरता नहीं ला पाते हैं।
तब हम मन ही मन गुजरे समय पर व्यथित हो ,
केवल पछताते हैं।
जरूरत है सोचने की कि क्या बो रहे हैं,
अपनी ही पीढियों में नफ़रत ही बो रहे हैं।
ऐसा न हो कि मैं भी खिंच जाऊं इस क़दर,
चाह कर न लौट पाऊं पहले की तरह रेखा घर।
फिर बाद में न कहना कि रिश्ता खून का रुलाता बहुत है