संघर्षों का सत्य ( sangharshon ka Satya)
संघर्षों का सत्य
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मेरी कुछ कहानियां तो रह जाएंगी
गुजरते वक्त के अंदर
लड़खड़ाती, डगमगाती,
मंजिल की ओर कदम बढ़ाती ,
कश्तियां नजर आएंगी
गहरा होगा स्याह समंदर ।
इन कश्तियों की पतवार
मेरे हाथों लौटकर नही आएंगी
छीन ली जांएगी मुझे बेबस जानकर
और तलातुम के हवाले मुझे कर देगा जमाना
तो क्या, मैं चुपचाप देखता ही रह जाऊंगा?
समंदर के उस पार भी होगा कोई नया ठिकाना।
सुना है किसी तजुर्बेकार से
वक्त की बात और इंसान की औकात
एक जैसी कब रहती है ?
समय देवों को भी संघर्ष में उलझा देता है ।
राम जैसे युगपुरुष को
वनवास झेलना पड़ता है
विरुपाक्ष को भी अंततः
विष प्राशन करना पड़ता है
जो इन संघर्षों का हंसकर सामना करता है
अंततोगत्वा समुद्र की छाती पर
इतिहास लिख देता है
अपने पुरखों की ये रीत भला कैसे छोड़ दूं ?
मतवाला हूं मैं , तूफानों का रुख मोड़ दूं।
मेरी जिंदगी मेरा यह युद्ध
किसी किताब में दर्ज नहीं होगा
मेरे खून पसीने का
कही कोई ज़िक्र नही होगा
जाने भी दो , छोड़ो यारों भूल जाओ
डूबते सूरज से सीखा है , न हालातों से घबराओ
जो आज है सामने , ये आज अभी का पल
हंसकर उसे ही अपनाओ।
उम्र हो चली, क्या करूं आदतें खराब है
सीने में आग है, धड़कनों में ख्वाब है।
ओझल होती परछाइयां, रंगमंच का खेला है
मुखौटो के पीछे अलग सा मेला है
पर्दा तो गिर ही जायेगा
एक दिन और ढल जायेगा
तिलस्मी अंधेरा मुझे कुछ पल छुपा लेगा
जादू की दुनिया को छलावा देकर
हर बार निकल आऊंगा
कल नया किरदार रचाकर ,फिर नमूदार हो जाऊंगा ।
रचयिता
शेखर देशमुख
J-1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू -2
सेक्टर 78, नोएडा (उ प्र)